Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 26 of 89

background image
ए आगाही साची ज पडी
सं. १९७८ पहेलांनो एक प्रसंग छे. ते वखते पू. श्री
कानजीस्वामी स्थानकवासी संप्रदायना महामुनि तरीके प्रसिद्ध हता;
ते वखते पातरां रंगवा वगेरे कार्यो करवा पडता, पण एमां तेमनुं
चित्त चोटतुं नहि; एमना चित्तमां तो बीजा ज विचारो रमी रह्या
हता के–अरे, आत्मानी साधना माटेनुं आ जीवन...एनो मोंघो समय
आ पातरां रंगवा ने वस्त्रो धोवानी उपाधिमां जाय–ए केम पालवे?
शुं मुनिदशा आवी होती हशे?....ना; हृदय ना पाडे छे. बीजी कोई
अनेरी दशाने एमनुं हृदय झंखी रह्युं हतुं.
एमनुं चित्त उदास अने विचारमग्न देखीने एमना गुरु श्री
हीराचंदजी महाराजे एकवार तेमने प्रेमथी पूछयुं–कानजी! तारुं चित्त
उदास केम रहे छे? तुं शुं विचार करे छे? त्यारे तेमणे जवाब आप्यो
के महाराज! आवा वस्त्र ने पात्रना कार्योमां