Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : वैशाख :
सदाय रहेवाना छे. जगतमां सिद्ध पण अनादिथी थता आवे छे ने निगोद पण
अनादिथी छे, मिथ्याद्रष्टि पण अनादिथी छे ने सम्यग्द्रष्टि पण अनादिथी छे, अज्ञानी
पण छे ने केवळज्ञानी पण छे; एम बधा प्रकारना जीवो जगतमां सदाय रहेवाना छे.–
कोई जीव आखा जगतमांथी अज्ञाननो ने अशुद्धतानो अभाव करवा मागे तो तेम न
करी शके, पण पोते पोताना आत्मामांथी अज्ञान अने अशुद्धता मटाडीने केवळज्ञान अने
सिद्धपद प्रगट करी शके.
जेटला शुभाशुभ व्यवहारभावो छे ते बधाय आगमपद्धत्तिमां छे; आगमपद्धत्ति
ते बंध पद्धत्ति छे, अथवा कर्म पद्धत्ति छे. तेमां धर्म नथी. धर्म तो अध्यात्मपद्धत्तिमां छे;
अध्यात्मपद्धत्ति ते मोक्षमार्गरूप छे, ते शुद्धभाव रूप छे. आ शुद्ध भावरूप अध्यात्म–
पद्धत्तिमां आत्मानो अधिकार कह्यो, पण आगम पद्धत्तिमां आत्मानो अधिकार न कह्यो,
केम के ते आत्माना स्वभावरूप नथी पण विभावरूप छे. अहीं ‘आगमपध्धति’ कही
तेमां ‘आगम’ नो अर्थ सिध्धान्तरूप शास्त्र न समजवो. पण आगम–पध्धत्ति एटले
अनादिथी चाली आवेली परंपरा; अथवा आगम एटले आगंतुक भावो. विकारी
भावो छे ते नवा आगंतुक छे, ते स्वभावमां नथी पण कर्मनिमित्ते पर्यायमां नवा नवा
उत्पन्न थयेला छे, ने अनादिथी तेनो प्रवाह चाल्यो आवे छे. विकार अने तेना
निमित्तरूप कर्म ए बंनेनो प्रवाह अनादिथी चाल्यो आवे छे तेनुं नाम आगमपध्धति
छे. ने जीवमां जे नवी अपूर्व अध्यात्मदशा एटले के शुध्धपर्याय प्रगटे ते
अध्यात्मपध्धति छे. आ बंने प्रकारना भावो जगतमां सदाय वर्तता ज होय छे. ए
बंनेनुं हवे विवेचन करे छे–
“आगमरूप कर्मपद्धत्ति छे; अध्यात्मरूप शुद्धचेतनापद्धत्ति छे. तेनुं विवेचन–
* कर्मपद्धत्ति पौद्गलिकद्रव्यरूप अथवा भावरूप छे. द्रव्यरूप तो पुद्गलना
परिणाम छे; भावरूप पुद्गलाकार आत्मानी अशुद्धपरिणतिरूप परिणाम छे. ते
बंने परिणाम आगमरूप स्थाप्या.
* हवे शुद्धचेतनापद्धत्ति एटले शुद्धआत्मपरिणाम; ते पण द्रव्यरूप तथा
भावरूप एम बे प्रकारे छे. द्रव्यरूप तो जीवत्व परिणाम, तथा भावरूप ज्ञानदर्शन–
सुख–वीर्य आदि अनंत गुणपरिणाम,–ए बंने परिणाम अध्यात्मरूप जाणवा.
आ आगम तथा अध्यात्म बंने पद्धत्तिमां अनंतता मानवी.
जुओ, हवे आ सूक्ष्म वात! पण छे तो जीवना पोताना परिणामनी ज
वात.