Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म
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वर्ष २२: अंक ७: तंत्री, जगजीवन बाउचंद दोशी: वैशाख २४९१: MAY 1965.
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* आनंद –उर्मिना साथिया
ने हर्षानंदना दीवडा *
असली स्वरूपनुं ज्ञान आपनार अपूर्व
महिमाना धारक श्री गुरुदेवना चरणकमळनी सेवा–
भक्ति निरंतर हृदयमां वसी रहो. आपे आ भरतखंडमां
अवतार लईने अनेक जीवोने उगार्या छे, सम्यक् पंथे
दोर्यो छे.
आपनुं
अद्भुत श्रुतज्ञान चैतन्यनो चमत्कार
बतावे छे. चैतन्यनी विभूति बतावे छे, चैतन्यमय
जीवन बनावे छे. आपना आत्म–द्रव्यमां श्रुतसागरनी
लहेरो ऊछळी रही छे. आत्म पर्यायोमां झगमगता
ज्ञानदीवडा प्रगटी रह्या छे–जे आत्मद्रव्यने प्रकाशी रह्या
छे. आपनुं आत्मद्रव्य आश्चर्य उपजावे छे.
हे गुरुदेव! आपना मुखकमळमांथी झरती
वाणीनी शी वात! ते एवी अनुपम–रसभरी छे के ते
दिव्य अमृतनुं पान करतां तृप्ति थती नथी. आपनी सूक्ष्म
वाणी, चमत्कार भरेली वाणी भवनो अंत लावनारी छे,
चैतन्यने चैतन्यना ज्ञान–महिमामां डुबाडनारी छे.
आपनां कार्यो अजोड छे.
पंचपरमेष्ठी भगवंतोने ओळखावनार हे
गुरुदेव! आप जिनेन्द्रदेवना परम भक्त छो, पंच
परमेष्ठीना परम भक्त छो,