श्रुतदेवी माता आपना हृदयमां कोतराई गयां छे.
जिनेन्द्रभगवंतो अने मुनिवरभगवंतोना दर्शन अने
स्मरणथी आपनुं अंतःकरण उभराई जाय छे.
हे गुरुदेव! आपे सम्यक् रत्नत्रयनो मार्ग स्वयं
आराधीने बीजाने ते मार्ग चारे बाजुथी स्पष्ट करीने
बताव्यो छे. आप नीडर निर्भय पराक्रमधारी छो.
वीरमार्गने पोते स्वयं निःशंकपणे प्रकाश्यो छे.
आत्मअनुभव वडे ज रत्नत्रयनी प्राप्ति थाय
अने तेनाथी ज मुक्तिनी प्राप्ति थाय एवुं असली
मूळभूत स्वरूप समजावीने, आपे जगत उपर भारे
उपकार कर्यो छे.
आप श्री जिनेन्द्रदेवना परम भक्त छो. श्री
जिनेन्द्रदेवने आपे अंतरमां वसाव्या छे. आप श्री
जिनेन्द्रदेवनी कृपाना महा पात्र छो.
नितनित आनंदमंगळनी वृद्धिना कारणभूत मंगळमूर्ति
गुरुदेवनो पुनित प्रताप जयवंत हो! गुरुदेवना
प्रभाव अने चैतन्यऋद्धिनी वृद्धि हो. मांगलिक
जन्म–महोत्सव प्रसंगे श्री गुरुदेवने भक्ति
पुष्पोथी वधावीए छीए, आनंद–
ऊर्मिना साथिया पूरीए छीए
अने हर्षानंदना दीवडा
प्रगटावीए छीए.