Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : वैशाख :
अनुभवगोचर थयो त्यां कोई प्रकारनी भ्रांति रहेती नथी, देहमां–रागमां–विकल्पमां
क््यांय एकत्वबुद्धि रहेती नथी, सर्व तरफथी शुद्धआत्मा ज प्रकाशमान थाय छे.
शुद्धआत्मा एवो छे के तेनो अनुभव करतां कोई भ्रांति रहेती नथी; बद्ध–स्पृष्ट
आदि भावोथी रहित स्वभाव ज्यां अनुभवमां स्पष्ट आवी गयो; त्यां स्वभावमां
बंधन के अशुद्धता हशे–एवी कोई शंका रहेती नथी.
प्रश्न:– शुद्धात्माना अनुभवमां विकार न होय, ए तो बराबर, परंतु तो पछी जे
राग–द्वेष–मोह अथवा सुखदुःखरूप परिणामोने कोण करे छे? ने कोण भोगवे छे?
आत्मा तो शुद्धस्वरूप छे. पछी आ अशुद्धभावो आव्या क््यांथी?
उत्तर:– भाई, स्वानुभवमां आत्मा शुद्ध छे, पण ज्यारे स्वानुभव न होय ने
विकार करे त्यारे जीव ज तेनो कर्ता ने भोक्ता छे. ए कांई जड नथी; चेतननो विकार
छे; ने स्वानुभवपणे जीव तेनो कर्ता नथी; पण जे जीव शुद्धपरिणतिरूप नथी
परिणमतो, ने अशुद्धतारूप परिणमे छे, तेनी पर्यायमां विकार छे तेनो कर्ता ते जीव
पोते ज छे; बीजो कोई तेनो कर्ता नथी, के कर्मे ते कराव्यो नथी. अज्ञानभावथी जीव ज
ते करे छे ने जीव ज तेने भोगवे छे. ज्ञानी जाणे छे के आ रागादिभावो छे ते जीवनी
विभाव परिणति छे, उपाधिरूप भाव छे. शुद्धस्वरूपमां तेनुं कर्तृत्व नथी,–पण
शुद्धस्वरूपने अनुभवे त्यारे तेनुं कर्तृत्व छूटे. आ रीते शुद्धात्माना विचार वखते ते
विकार जीवनुं स्वरूप नथी. एक कह्युं. पण निजस्वरूपनो विचार करे नहि; निजस्वरूप
शुं छे तेने जाणे नहि–अनुभवे नहि, ने कहे के विकार आत्मामां छे ज नहि.–तो ते तेनी
भ्रान्ति छे. भाई, शुद्धस्वरूपनी द्रष्टि अने अनुभव प्रगट कर्या वगर पर्यायमांथी
अशुद्धभावोनुं कर्तृत्व छूटे नहि; रागादि अशुद्धभावो जीवनी साथे बंधायेला छे,–जीवनी
पर्यायमां छे,–पण शुद्धस्वरूपमां ए कोई अशुद्धभावो प्रतिष्ठा पामता नथी, शोभा
पामता नथी, शुद्धस्वरूपमां ते पेसी जता नथी. आत्मा साथे जाणे ते अशुद्धता पिंडरूप
थई गई होय–एम पर्यायद्रष्टिथी देखाय छे, पर्यायमां ते विद्यमान छे, पण
शुद्धस्वरूपना अनुभवथी ते बहार छे, शुद्ध स्वरूप ते विभावरूप थई गयुं नथी. माटे
आवा सम्यक्स्वभावने अनुभवमां ल्यो. शोभा तो आवा शुद्धस्वरूपना अनुभवथी छे,
विभावोथी आत्मानी शोभा नथी. विभावोने आत्माना शुद्धस्वरूपमां स्थान नथी,
आत्माना स्वरूपमां विभावोनी प्रतिष्ठा नथी.
शुद्धस्वरूपे वर्तमानमां छे, ने अशुद्धताय वर्तमानमां छे, पण बंने एकमेक नथी;
बद्ध–स्पष्ट आदि विभावो छे, ते स्वभावपणे नथी, ए तो नवा संबंधपणे थयेला छे.
ए छूटी जतां आत्माना स्वरूपमांथी कांई छूटी जतुंं नथी, केमके ते भावो शुद्धस्वरूपथी
बहार छे.