Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 43 of 89

background image
: ३२ : आत्मधर्म : वैशाख :
आत्मानो अनुभव
* आवो अनुभव करतां शुं थाय छे? ने आत्मा
केवो देखाय छे? ते कहे छे– *
भूतं भांतमभूतमेव रभसा निर्भिध बन्धं सुधी–
र्यधंतः किल कोऽप्यहो कलयति व्याहत्यमोहं हठात्।
आत्मात्मानुभवैकगम्यमहिमा व्यक्तोऽयमास्ते धु्रवं
नित्यं कर्मकलंकपंकविफलो देवः स्वयं शाश्वतः।।१२।।
आवो अनुभव करतां भगवान आत्मा पोताना स्वस्वभावपणे प्रगट थाय
छे.... एटले के पर्यायमां प्रगट अनुभवरूप थाय छे. चेतना लक्षणरूप आत्मा स्वानुभव
वडे अशुद्धतारूपी कीचडथी सर्वथा भिन्न थाय छे. जुओ तो खरा, आ आत्माना
अनुभवनो महिमा! के जेनो अनुभव थतां ज चारगतिमां भ्रमण अटकी जाय छे ने
धु्रव–स्थिर एवी स्वभावदशाने पामे छे; स्वानुभवनुं उत्कृष्ट फळ सिद्धदशा छे.
आत्मानो अनुभव करतां जे तेना स्वभावमां छे ते पर्यायमां पण व्यक्त थाय छे.
अनुभवमां आवतो भगवान शुद्धआत्मा पोते देव छे, पोते दिव्यमहिमावाळो देव छे,
तेथी त्रणलोकथी पूज्य छे. त्रणलोकमां जेटला मोटा पुरुषो छे–ज्ञानीओ धर्मात्मा छे
तेओ सर्वे आ चैतन्य स्वभावने पूजनीय–आदरणीय समजे छे, माटे ते देव छे, एनो
दिव्य महिमा छे; ते पोते शाश्वत छे. आवा महिमावाळो आत्मा स्वानुभवमां प्रगट
थाय छे.
आवो आत्मा केम प्रगट थाय?
के स्वानुभवद्वारा ज प्रगट थाय. भगवान आत्मानो महिमा एटलो महान छे
के स्वानुभवना अतीन्द्रिय आनंदद्वारा ज ते प्रगट थाय, बीजा कोईथी ते गम्य थाय
नहि.