: वैशाख : आत्मधर्म : ३३ :
स्वानुभव–प्रत्यक्ष सिवाय बीजा कोईमां (–रागमां, व्यवहारमां के ईन्द्रियज्ञानमां)
एवी ताकात नथी के भगवान आत्माना अचिंत्य महिमानो पार पामे!
आत्माना स्वानुभवथी ज शांति ने सुख मळे छे. आत्मा ज्ञानस्वरूप ने
अतीन्द्रिय आनंदस्वरूप छे, तेनो महिमा स्वानुभवद्वारा ज गोचर थाय छे. ज्ञान ने
आनंदना अनुभव द्वारा ज ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानो महिमा प्रत्यक्षगोचर थाय छे.
विकल्पो तो पोते दुःखरूप छे, ते दुःख द्वारा आनंदस्वरूप आत्मानो अनुभव थतो नथी.
आत्मारूप थईने आत्मा अनुभवाय, आत्माथी विरुद्धभावे आत्मा न अनुभवाय.
आत्मा तो ज्ञानानंद स्वरूप छे, तो तेनुं वेदन पण ज्ञान ने आनंदरूप छे. ज्ञाननो कण
जागे ने आनंदनो स्वाद आवे–एनुं नाम अनुभव छे. विभाव तो विपरीत छे, तेनामां
एवी ताकात नथी के स्वभावमां एकमेक थईने तेने अनुभवे. स्वभावमां एकमेक
थईने तेनो अनुभव करवानी ताकात अतीन्द्रिय– ज्ञान ने आनंदमां ज छे. विकल्प तो
कीचड जेवा छे. स्वानुभवरूपी अमृतमां कीचड केम होय? स्वानुभवमां आनंदना
अमृतसमुद्र छे. चैतन्यनी महत्ता एवी छे के अतीन्द्रियभाव विना ते भासे नहि.
चैतन्यवस्तुनो अद्वितीयमहिमा अज्ञानीने ख्यालमां आवतो नथी; अंतरमां वळेली जे
चैतन्यप्रभुनो महिमा (मोटाई–बडाई) एक रीते ज गम्य छे,–कई रीते? के
आत्मामां जेम ज्ञान गुण छे तेम अतीन्द्रियसुख नामनो पण एक गुण छे;
अशुद्धभावरूप संसारदशामां ते सुखनो स्वाद आवतो नथी. ए सुख अशुद्धता टळीने
शुद्ध– स्वरूपनो अनुभव थतां ज प्रगटे छे. ए सुख एवुं छे के चारे गतिमां एनुं कोई
द्रष्टांत नथी, त्यारे गतिना परभावमां क््यांय एवुं सुख नथी–के जेना द्वारा चैतन्यनुं
अतीन्द्रिय सुख समजावी शकाय. अहा, आवुं सुख? परमात्माने पूर्ण प्रगट थयुं छे, ने
दरेक आत्माना स्वभावमां भर्युं छे, पण ज्यारे शुद्धस्वरूपनो अनुभव करे त्यारे ते
सुखनो अनुभव–अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव थाय छे.
शक्तिमां सुखस्वभाव भर्यो छे.
तेनो अनुभव केम नथी? के पोतामां अशुद्धता छे माटे. तेनो अनुभव केम
थाय? के पोताना शुद्धस्वरूपने अनुभवे त्यारे. आम द्रव्यना स्वभावनुं, अने तेनी
शुद्ध–अशुद्ध पर्यायनुं ज्ञान कराव्युं. अहा, स्वानुभवना सुखनी सरस ने मीठी वात छे.
आत्मा अतीन्द्रिय आनंदस्वभावथी भरेलो छे, पण पर्यायमां ते प्रगट नथी;–ते
क््यारे प्रगटे? के शुद्धस्वरूपने अनुभवतां अतीन्द्रियआनंद प्रगटे.