: ३४ : आत्मधर्म : वैशाख :
आत्माना अनुभव वगर अज्ञानभावथी जीवोने एकलुं दुःख छे, पण ए दुःख
एने दुःख केम लागतुं नथी?–तो कहे छे के एने साचा सुखनी खबर नथी, एटले
दुःखने पण ते ओळखतो नथी. दुःखनी मंदतामां एने सुख लागे छे, अथवा साताना
वेदनमां ते सुखनी कल्पना करे छे, पण ते सुख नथी, तेमां तो दुःख छे. आकुळता
वगरनुं अतीन्द्रियसुख लक्षमां ल्ये तो खबर पडे के स्वानुभव सिवाय साचुं सुख होय
नहि. स्वानुभव करतां अशुद्धता टळे ने अतीन्द्रिय आनंद प्रगटे. आनंदनो उत्पाद,
अशुद्धतानो ने दुःखनो व्यय, तथा ज्ञानानंद– स्वभावनी धु्रवता, आम उत्पाद–व्यय–
धु्रव पण आवी गया.
परमात्माने पूर्ण अतीन्द्रियसुख छे, ने साधकने स्वानुभवथी ते अतीन्द्रियसुख
अंशे प्रगट्युं छे, स्वानुभव जेने नथी तेवा जीवो चारगतिमां एकला दुःखने ज भोगवे
छे. अंदरना परमात्मस्वरूपने ध्यावतां जे सुख अनुभवाय ते सुख जगतमां बीजे
क््यांय कोई पदार्थमां नथी, विकल्पथी एनी कल्पना पण थई शकती नथी. आचार्यदेव
कहे छे के भाई, जगतनी जंजाळ छोडीने, जगतनो मोह छोडीने आवा स्वानुभवसुखने
तुं अनुभवमां ले. तारी स्ववस्तुमां आ सुख भरेलुं छे ते स्वानुभवथी प्रगट कर.
एक कोर चक्रवर्तीनो वैभव, ईन्द्रनो वैभव, अरे! त्रणलोकनी बाह्यसामग्री,–
अने बीजी कोर अंदरना स्वानुभवना सुखनो एक कणियो,–तो कहे छे के त्रणलोकनी
सामग्रीमां आ सुखनो कणियो नथी, अने ते सामग्रीवडे आ सुखनी कल्पना पण थई
शकती नथी. माटे कहे छे के स्वानुभव जेवुं सुख जगतमां क््यांय नथी; पोतानुं
शुद्धस्वरूप अनुभवतां अतीन्द्रिय सुख थाय छे. माटे आवो शुद्ध आत्मा ज उपादेय छे,
ने तेने ध्याववो ते ज मोक्षनो उपाय छे. शुद्धात्मानो उपादेय करवो ते ज मोक्षनो उपाय
छे.
प्रश्न:– परमात्माने जे पूर्ण अतीन्द्रिय सुख छे, ने आत्माना स्वभावमां जे पूर्ण
अतीन्द्रियसुख भर्युं छे, ते सुखने कोण जाणी शके?
उत्तर:– जेने शुद्धस्वरूपनो अनुभव छे तेने ज ते सुख गम्य छे, जेणे पोते
स्वानुभवथी पोतामां ते सुखनी वानगी चाखी ते ज तेवा पूर्ण सुखने जाणी शके छे.
तेथी कह्युं के –“आत्मात्मानुभवैकगम्यमहिमा”
अहीं तो कहे छे के जेने स्वानुभव नथी ते परमात्माना सुखने ओळखतो नथी.
भगवानने जेवुं अतीन्द्रिय सुख छे तेवा सुखनो अंश पोतामां स्वानुभवथी अनुभव्या
वगर, एटले के अतीन्द्रियज्ञानथी पोताना आत्माने अनुभव्या वगर, भगवानने केवुं
सुख छे तेनी ओळखाण थाय नहि. पोते एकला दुःखना स्वादमां (ने ईन्द्रियज्ञानमां)
ऊभो रहीने परमात्माना अतीन्द्रिय सुखने जाणी न शके. ज्यां स्वानुभव थयो ने
स्वभावनुं सुख चाख्युं त्यां भान थयुं के अहो,