: ३६ : आत्मधर्म : वैशाख :
अनादिनो मिथ्याद्रष्टि जीव ज्यारे स्वानुभव तरफनो प्रयत्न उपाडवानी
भूत–वर्तमान के भावि एवा त्रणे काळना बंधने, त्रणे काळनी एकत्वबुद्धिरूप
स्वानुभूतिमां वर्तमानमां ज पोतानो अचिंत्य महिमावंत आत्मदेव सर्व कर्मोथी
शुद्धनयस्वरूप जे आत्मानी अनुभूति छे ते अनुभूतिमां बधुं समाय छे.