Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : आत्मधर्म : ३७ :
स्वानुभूतिमां बधुं समाय छे
सम्यग्दर्शनथी मांडीने सिद्धपद सुधीनी
शुद्धता स्वानुभूति वडे प्रगटे छे.
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग
स्वानुभूतिमां समाय छे. संतो अने
शास्त्रो स्वानुभूति करवानुं फरमावे छे. जे
शास्त्रो तरफ ज जोई रहे छे ने आत्मा
तरफ वळीने स्वानुभूति करतो नथी तेणे
शास्त्रनी आज्ञा मानी नथी. जेणे
स्वानुभव कर्यो तेणे सर्वे शास्त्रोनुं रहस्य
जाणी लीधुं. आ रीते स्वानुभूतिमां सर्वे
शास्त्रोनुं रहस्य समाय छे.
आत्मानुभूतिरिति शुद्धनयात्मिका या
ज्ञानानुभूतिरियमेव किलेति बुद्धवा।
आत्मानमात्मनि निवेश्य सुनिष्प्रकम्य–
मेकोस्ति नित्यमवबोधधनः समन्तात्।।१३।।
अहो, आ स्वानुभूति–ते जैनशासननो मर्म छे. जैनशासननुं रहस्य
स्वानुभूतिमां समाय छे. मुनिवरोना अंतरमां आवी स्वानुभूतिनो प्रवाह वर्ते छे ते ज
मोक्षमार्ग छे. साथे जे महाव्रतनो शुभराग होय ते कांई मोक्षमार्ग नथी. मोक्षमार्गनो
भाव, ने रागभाव, ए बंने भावो ज जुदा छे; मोक्षमार्गनो भाव तो स्वानुभूतिमां
समाय छे ने रागभाव तो स्वानुभूतिथी बहार रही जाय छे–आवी भिन्नता अनुभव्या
विना मोक्षमार्ग साधी शकाय नहि.
मोक्षमार्गमां आवश्यकता शेनी?–के स्वानुभूतिनी.
स्वानुभूति विना मोक्षमार्ग होतो नथी.
मोक्षमार्गी जीवनी वच्चे बीजा रागादि भावो आवे भले, पण ते बीजा भावो
आवश्यक नथी, तेने आधीन मोक्षमार्ग नथी; ते भावो न होय तो मोक्षमार्ग अटकी
जाय एम नथी. मोक्षमार्ग स्वानुभूतिने आधीन छे. ज्यां स्वानुभूति नथी त्यां
मोक्षमार्ग नथी.