: वैशाख : आत्मधर्म : ३९ :
शुद्ध वस्तु छे एवो ज एनो अनुभव छे. शुद्धवस्तुमां जेम अशुद्धता नथी, तेम तेनी
अनुभूतिमां पण अशुद्धता नथी. निरूपाधिरूपे वस्तु जेवी छे तेवी प्रत्यक्ष स्वादमां आवे
तेनुं नाम शुद्धात्मानो अनुभव छे. आवो अनुभव शुद्धनयवडे थाय छे, तेथी
अनुभूतिने शुद्धनयस्वरूप कीधी छे.–अशुद्धता, विकल्प, राग तेमां समाय नहि.–आवी
अनुभूतिमां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग समाय छे.
अनुभूतिए ज्यां निज स्वरूपमां प्रवेश कर्यो त्यां तेमां एकला शुद्धद्रव्यनो ज
स्वाद रह्यो, बीजा बधाय परभावो बहार रही गया. आवी अनुभूति करवानी
शास्त्रनी आज्ञा छे, केमके ते ज मोक्षमार्ग छे–एम जाण्युं.
जेणे ज्ञानस्वरूप शुद्धआत्मानो अनुभव लीधो तेणे बारे अंगनुं रहस्य जाणी
लीधुं; बार अंगमां पण शुद्धात्माना अनुभवनो ज उपदेश छे, ने तेने ज मोक्षमार्ग कह्यो
छे, कोईने संशय थाय के बार अंगनुं ज्ञान ते कोई अपूर्व लब्धि छे, एटले शास्त्रना
जाणपणानी ज महत्ता लागे ने अनुभवनो महिमा न जाणे, तो कहे छे के भाई,
आत्मानुभव ए ज मोक्षमार्ग छे–एम द्वादशांगमां पण कह्युं छे. माटे ज्यां शुद्धात्मानी
अनुभूति थई त्यां एवो कोई नियम नथी के आटला शास्त्रनुं जाणपणुं होवुं ज
जोईए. ज्ञाननी अनुभूतिने मोक्षमार्ग कहेतां कोई शास्त्रज्ञानने मोक्षमार्ग समजी जाय,
तो कहे छे के शास्त्र तरफनुं ज्ञान तेमां तो विकल्प छे, तेने अमे खरेखर ज्ञानअनुभूति
कहेता नथी, शुद्धात्मानी जे अनुभूति छे ते ज ज्ञाननी अनुभूति छे, ने ते ज मोक्षमार्ग
छे. बार अंगनुं ज्ञान तो सम्यग्द्रष्टिने संयमीने ज ऊघडे छे; सम्यग्द्रष्टिनेय तेमांय
विकल्प छे, शास्त्र तरफनुं ज्ञान ते मोक्षनुं कारण नथी, तो पछी बीजो शुभराग मोक्षनुं
कारण केम थाय? बार अंगना शास्त्रो पोते एम कहे छे के अमारा तरफनुं वलण ते
मोक्षनो मार्ग नथी पण तारा शुद्धस्वरूपनी अनुभूति कर, ते मोक्षनो मार्ग छे. शास्त्र
तरफ जोई रहे ने शास्त्रे कहेला आत्मा तरफ न वळे तो तेणे खरेखर शास्त्रनी आज्ञा
मानी नथी. जेणे स्वानुभूति करी तेणे बधा शास्त्रोनुं रहस्य जाणी लीधुं.
आ रीते, स्वानुभूतिने एवो कोई शास्त्रज्ञाननो प्रतिबंध नथी के आटला
शास्त्रो भण्यो होय तो ज अनुभूति थाय? शास्त्रो न भण्यो होय छतां देडकुंय
स्वानुभूति करी ल्ये. शास्त्रो भले न भण्यो पण शास्त्रोए जे करवानुं कह्युं हतुं ते तेणे
पोतामां करी लीधुं एटले शास्त्रनुं रहस्य ते स्वानुभूति वडे पामी गयो. अनुभूति कांई
शास्त्रोने अवलंबती नथी, अनुभूति तो शुद्ध आत्माने ज अवलंबे छे. अहो! आवी
निरालंबी अनुभूतिनो अपार महिमा छे. माटे
हे मोक्षार्थी जीवो! मोक्षने माटे
शुद्धआत्मानी आवी अनुभूति करो.