वळी जे काळे कोई जीवने दर्शनमोहना उपशम–
क्षयोपशमथी स्वपरना यथार्थ श्रद्धानरूपे तत्त्वार्थ –
श्रद्धान थाय त्यारे ते जीव सम्यक्त्वनी थाय छे. माटे
स्वपरना यथार्थ श्रद्धानमां शुद्धात्म श्रद्धानरूप निश्चय
सम्यक्त्व गर्भित छे.
वेपारधंधानी के घर– कुटुंबनी वात न होय, आमां तो स्वानुभव वगेरेनी लोकोत्तर
चर्चा भरेली छे. एना भाव समजे एने एनी किंमत समजाय, जेम कोई एक शाहुकार
वेपारी बीजा शाहुकार उपर खुल्ला पोस्टकार्डमां चिठ्ठि लखे छे के ‘बजारभाव करतां
जराक ऊंचा भावे पण एक लाख गांसडी रू खरीद करो.’ जुओ, आ दोढ लीटीना
लखाणमां तो केटली वात आवी जाय छे! सामसामा बंने वेपारीओनो एकबीजा
उपरनो विश्वास, हिंमत, शाहुकारी, वेपार संबंधीनुं ज्ञान–ए बधुंय दोढ लीटीमां भर्युं
छे. पण एना जाणकारने एनी खबर पडे, अभणने शुं खबर पडे? तेम सर्वज्ञ
भगवाने शास्त्ररूपी चिठ्ठिमां सन्तो उपर धर्मनो संदेश लख्यो छे, तेमां स्वानुभवना ने
स्व–परनी भिन्नता वगेरेना अनेक गंभीर रहस्यो भर्यां छे. ते उपरथी तेमनी सर्वज्ञता,
वीतरागता तेमज झीलनारनी ताकात–ए बधुं ख्यालमां आवी जाय छे. भगवानना
शास्त्रमां भरेला गूढ भावोने ज्ञानी ज जाणे छे. अज्ञानीने एना रहस्यनी खबर पडे
नहि, ने रहस्य जाण्या वगर एनो खरो महिमा आवे नहि.
उत्पत्ति थाय छे. स्वानुभव ए एक दशा छे, ते दशा जीवने अनादिथी होती नथी पण
नवी प्रगटे छे. ए स्वानुभवदशानो घणो महिमा शास्त्रोए वर्णव्यो छे; स्वानुभव ए
मोक्षमार्ग छे. स्वानुभवमां जे आनंद छे एवो आनंद जगतमां बीजे क््यांय नथी.
आवी स्वानुभवदशानुं स्वरूप अहीं कहेशे.