Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : आत्मधर्म : ४१ :
आ जगतमां अनंत जीवो छे; दरेक जीव चैतन्यमय छे, परिपूर्ण ज्ञान ने सुख दरेक
जीवना स्वभावमां भरेला छे. पण आवा पोताना स्वरूपने पोते देखतो नथी–नथी
अनुभवतो तेथी अनादिथी ते मिथ्याद्रष्टि छे. अनादिथी पोताना साचा स्वरूपने भूलीने
परभावोमां ज तन्मय थई रह्यो छे, स्व–परनी जेवी भिन्नता छे तेवी यथार्थ जाणतो नथी
ने विपरीत माने छे. एटले परथी मारामां कांईक थाय ने हुं परमां कांईक करी दउं–एवी
ऊंडी ऊंडी स्व–परनी एकत्वबुद्धि तेने रह्या करे छे, एवी विपरीत श्रद्धानुं नाम मिथ्यात्व
छे. जुओ, आ विपरीत मान्यता जीव पोते ज पोताना स्वरूपने भूलीने करी रह्यो छे,
एकेक समय करतां करतां अनादिकाळथी पोते ज पोताना अज्ञानने लीधे मिथ्याभावरूप
परिणमी रह्यो छे, कोई बीजाए तेने मिथ्यात्व कराव्युं नथी. मिथ्यात्वकर्मे जीवमां मिथ्यात्व
कराव्युं–एम जे माने तेने स्वपरनी एकत्वबुद्धि छे. पूजननी जयमालामां पण आवे छे के
‘कर्म बिचारे कोन, भूल मेरी अधिकाई’ प्रभो! हुं मारी भूलनी अधिकताथी ज दुःख
भोगवी रह्यो छुं. निगोदमां जे जीव अनादिथी निगोदमां रह्यो छे ते पण पोताना
भावकलंकनी अत्यंत प्रचूरताने लीधे ज निगोदमां रह्यो छे: भावकलंकसुपउश
निगोयवासं ण मुंचई– गोमट्टसार जीवकांड: भाई, तारी भूल तुं जडने माथे नांख तो ए
भूलथी तारो छूटकारो कये दी’ थशे? जीव अने जड बंने द्रव्य ज ज्यां अत्यंत जुदा, बंनेनी
जाति ज जुदी, बंनेनुं परिणमन जुदुं, त्यां एक बीजामां शुं करे? पण आवी वस्तुस्थितिने
नहि जाणनार जीवने स्वपरनी एकत्वबुद्धिनो अथवा कर्ताकर्मनी बुद्धिनो भ्रम अनादिथी
चाल्यो आवे छे, ए ज मिथ्यात्व छे ने ए ज संसारदुःखनुं मूळ छे. अहीं तो हवे ए
भ्रमरूप मिथ्यात्व केम टळे एनी वात छे.
कोई मुमुक्षु जीव ज्यारे अंतरना पुरुषार्थथी स्व–परना यथार्थ श्रद्धानरूप
तत्त्वार्थ– श्रद्धान करे त्यारे ते जीव सम्यक्त्वी थाय छे. स्व शुं, पर शुं, स्वमां आत्मानो
शुद्ध स्वभाव शुं ने रागादि परभाव शुं ए बधाने भेदज्ञानथी बराबर ओळखीने
प्रतीत करतां सम्यक्त्व थाय छे. स्व–परना आवा यथार्थ श्रद्धानमां शुद्धात्मश्रद्धानरूप
निश्चय सम्यक्त्व गर्भित छे. जुओ, आ मूळ वात! स्व–परनी श्रद्धामां के देव–गुरु–
शास्त्रनी श्रद्धारूप व्यवहार सम्यक्त्व वखते निश्चय सम्यक्त्व तो भेगुं ने भेगुं ज छे.
कोई कहे के निश्चयसम्यकत्व चोथा गुणस्थाने न होय. तो कहे छे के भाई, जो निश्चय
समकित भेगुं ने भेगुं ज न होय तो तारा मानेला एकला व्यवहारने शास्त्रकारो
सम्यक्त्व कहेता ज नथी. जेने शुद्धात्मश्रद्धानरूप निश्चय समकित नथी ते जीव सम्यक्त्वी
ज नथी ते तो मिथ्यात्वी ज छे, शुद्धात्माना श्रद्धानरूप निश्चय सम्यकत्व थाय त्यारे ज
जीवने चोथुं गुणस्थान प्रगटे ने त्यारे ज तेने समकिती कहेवाय. माटे कहे छे के
सम्यग्द्रष्टि जीवने स्व–परना यथार्थ श्रद्धानमां शुद्धात्मयश्रद्धानरूप निश्चय सम्यक्त्व
गर्भित छे. ‘गर्भित छे’ एनो अर्थ एनी साथे ज वर्ते छे. अने आवा जीवने
निमित्तपणे दर्शनमोहकर्मनो उपशम क्षयोपशम के क्षय स्वयमेव होय छे. एटले कथनमां
निमित्तथी एम कहेवाय के दर्शनमोहना