: वैशाख : आत्मधर्म : पप :
विषयकषायनो रस अंतरमांथी सर्वथा छूटी जाय, एमा क््यांय अंशमात्र पण आत्मानुं
हित के सुख न लागे; एटले एमां स्वच्छंदे तो ते न ज वर्ते. ए ‘सदन निवासी तदपि
उदासी’ होय छे.
आ रीते धर्मीने सम्यग्ज्ञान साथे शुभ–अशुभ परिणाम पण वर्तता होय छे पण
तेथी कांई तेना सम्यक्श्रद्धान–ज्ञान दुषित थई जता नथी; ज्ञान परिणाम जुदा छे ने
शुभाशुभ परिणाम जुदा छे, बंनेनी धारा जुदी छे. विकल्प अने ज्ञाननी भिन्नतानुं
भान विकल्प वखतेय खसतुं नथी. उपयोग भले परने जाणवामां रोकायो होय तेथी
कांई श्रद्धा के ज्ञान मिथ्या थई जता नथी. आ रीते धर्मीने सविकल्प दशा वखते पण
सम्यक्त्वनी धारा तो एवी ने एवी वर्त ज छे.
जैनदर्शन
शिक्षण वर्ग
राजकोटमां पंचकल्याणक प्रतिष्ठा–
महोत्सव ऊजवीने पू. गुरुदेव ता. १३–प–
६प वैशाख सुद १३ ने गुरुवारना रोज
सोनगढ पधारशे. तथा बीजा दिवसथी एटले
के वैशाख सुद १४ ने शुक्रवार ता. १४–प–
६प थी विद्यार्थीओ माटेनो शिक्षण वर्ग शरू
थशे. आ शिक्षण वर्ग जेठ सुद त्रीज ने ता.
२–६–६प सुधी चालशे. शिक्षण वर्गमां
आववा ईच्छता विद्यार्थीबंधुओए दि. जैन
स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ (सौराष्ट्र)
ए सरनामे सूचना मोकली देवी, तथा
टाईमसर सोनगढ आवी जवुं. (पोतानुं
बेडींग साथे लाववुं)