Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : आत्मधर्म : प७ :
पूरुं ज्ञान खीलतुं नथी एटले पूर्णस्वभावनो आश्रय कराववा अपूर्ण ज्ञानोने विभाव
कह्या छे. पण जेम रागादि विभावो तो स्वभावथी विरुद्ध छे–तेमनी जात ज जुदी छे,
तेम कांई ज्ञाननी जात जुदी नथी, ज्ञान तो स्वभावथी अविरुद्ध जातनुं ज छे. जेम
पूर्णप्रकाशथी झळझळता सूर्यमांथी वादळांनो विलय थतां जे प्रकाशकिरणो झळके छे ते
सूर्यप्रकाशनो ज अंश छे, तेम ज्ञानावरणादि वादळां तूटतां सम्यक् मतिश्रुतरूप जे ज्ञान
किरणो प्रगट्या ते, केवळज्ञानना पूर्णप्रकाशथी झळहळतो जे चैतन्यसूर्य, तेना ज
प्रकाशना अंशो छे. सम्यक् मतिश्रुतरूप जे अंशो छे ते बधाय चैतन्यसूर्यनो ज प्रकाश छे.
जेम बीजचंद्र वधीवधीने पूर्णचंद्ररूप थाय छे तेम सम्यक् मतिश्रुतज्ञान पण वधतां
वधतां केवळज्ञान थाय छे. जो के मति–श्रुत पर्याय तो पलटी जाय छे, ते पोते कांई
केवळज्ञानरूप थती नथी, एटले पर्यायअपेक्षाए ते ज नथी परंतु सम्यक् जाति
अपेक्षाए ते ज ज्ञान वधतां वधतां केवळज्ञान थयुं एम कहेवाय छे. पांचेय ज्ञानो
सम्यग्ज्ञानना ज प्रकार छे एटले केवळज्ञान अने मतिज्ञान बंने ‘सम्यक’पणे सरखां
छे, बंनेनी जात एक ज छे. जेम एक ज पिताना पांच पुत्रोमां कोई मोटो होय, कोई
नानो होय, पण छे तो बधाय एक ज बापना दीकरा; तेम केवळज्ञानथी मांडीने
मतिज्ञान ए पांचे सम्यग्ज्ञानो ज्ञानस्वभावना ज विशेषो छे, तेमां केवळज्ञान ए मोटो
महानपुत्र छे ने मतिज्ञानादि भले नाना छे, तोपण ते केवळज्ञाननी ज जात छे.
शास्त्रमां (जयधवलामां) वीरसेनस्वामीए गणधरने ‘सर्वज्ञपुत्र’ कह्या छे, तेम अहीं
कहे छे के मति–श्रुतज्ञान ते केवळज्ञानना पुत्र छे, सर्वज्ञताना अंश छे. जेम
सिद्धभगवाननो पूर्ण अतीन्द्रिय आनंद ने समकितीनो भूमिकायोग्य अतीन्द्रिय आनंद
ए बंने आनंदनी एक ज जात छे. मात्र पूरा ने अधूरानो ज भेद छे पण जातमां तो
जराय भेद नथी, एटले समकितीनो आनंद ते सिद्धभगवानना आनंदनो ज अंश छे;
आनंदनी जेम एनुं मतिज्ञान ते पण केवळज्ञाननो ज अंश छे. पूरा ने अधूरानो भेद
होवा छतां बंनेनी जातमां जराय भेद नथी.
भाई, तारुं ज्ञान ए केवळज्ञाननी ज जातनुं,–पण क््यारे? के तुं तारा स्वभावनुं
सम्यग्ज्ञान कर त्यारे. हजी तो शुभरागने मोक्षनुं कारण मानतो होय, व्यवहारना
अवलंबने मोक्षमार्ग थवानुं मानतो होय, जडदेहनी क्रियाओने आत्मानी मानतो होय
ने ते क्रियाओथी धर्म थवानुं मानतो होय, तेने तो कहे छे के भाई, तारुं बधुंय ज्ञान
मिथ्या छे. हजी तो सर्वज्ञे कहेलां नवतत्त्वनी तने खबर नथी, सर्वज्ञस्वभावनो
(केवळज्ञाननो) तने निर्णय नथी त्यां ते केवळज्ञाननो अंश केवो होय तेनी ओळखाण
क््यांथी थाय? मारुं आ ज्ञान केवळज्ञाननो अंश छे–एम बराबर नक्की करे एनी द्रष्टि
अने ज्ञानपरिणति तो ज्ञानस्वभावमां ऊंडी ऊतरी गई होय. ए शुभरागमां धर्म
मानीने एमां ज न रोकाई रहे; ए तो रागथी क््यांय पार एवा ज्ञानस्वभावमां अंदर
प्रवेशी जाय. आवुं ज्ञान ते ज केवळज्ञाननी जातनुं थईने केवळज्ञानने साधे छे. सम्यक्
मतिश्रुत ते जो केवळ–