: ६४ : आत्मधर्म : वैशाख :
तारे जगतमां कोईनी ओशीयाळ करवी पडे एवुं नथी. तारा आत्माना आश्रये ज तारो
मोक्षमार्ग छे. तुं एकलो–एकलो तारामां ने तारामां तारो मोक्षमार्ग साधी शके छे. वाह,
केवी स्वतंत्र वस्तुस्थिति! बीजानी मदद लेवा जईश तो तुं तारा स्वाधीन मोक्षमार्गने
साधी शकशे नहि. मोक्षमार्ग पराधीन नथी, मोक्षमार्ग परथी अत्यंत निरपेक्ष छे.
(१३६) साधकनी व्यवस्थित मति (मार्गनो द्रढ निर्णय)
बधाय तीर्थंकर भगवंतोए अनुभवेलो ने दर्शावेलो मोक्षमार्ग केवो छे तेनो द्रढ
निर्णय करीने, अने पोते तेवा मोक्षमार्गरूप परिणमीने प्रवचनसारमां आचार्यदेव कहे छे
के मारी मति व्यवस्थित थई छे. मोक्षमार्ग अवधारित कर्यो छे, कृत्य कराय छे. मार्गना
निर्णयमां जेनी भूल छे, वस्तुस्वरूपमां जेनी भूल छे. जेणे मार्ग अवधारित कर्यो नथी
तेनी मति व्यवस्थित नथी एटले सम्यक् नथी, पण तेनी मति डामाडोळ छे एटले के
मिथ्या छे. मार्गनो निर्णय करीने मतिने द्रढ व्यवस्थित कर्या वगर मार्ग साधी शकाय नहि.
(१३७) मुंझवण टाळवानो मार्ग
हुं ज्ञान छुं एम ज्ञाननो विश्वास करे तो बधी मुंझवण टळे. केमके ज्ञानमां
मुंझवण नथी, ज्ञानमां प्रतिकूळता नथी. ज्ञान तो आनंदरूप ने समाधानरूप छे. सर्व
दुःखोनी परम औषधि एटले ‘ज्ञान तेथी कह्युं छे के–
ज्ञान समान न आन जगतमें सुखको कारन,
यह परमामृत जन्म–जरा–मृतु रोग मिटावन.
भवरोगने पण मटाडवानी जेनी ताकात छे ते ज्ञान वळी बीजी कई मुंझवण रहेवा देशे?
(१३८) आत्मानो स्वभाव
जुओ, भाई आत्मानो स्वभाव एवो अपूर्व छे के जेनी आराधनाथी संसारनो
पार पमाय ने मोक्षसुख प्राप्त थाय. जे स्वभावनी सामे नजर करतां पण आनंद थाय,–
एवो आनंद थाय के विश्वना बीजा कोई पदार्थमां न होय; जे स्वभावनो महिमा याद
करतां पण जगतमां दुःखो दूर थाय....आवा स्वभावनो धारक आत्मा पोते ज छे.
(१३९) सर्वोत्कृष्ट
* जगतमां सर्वोत्कृष्ट शुं?–के आत्मानो स्वभाव.
* जगतमां सर्वोत्कृष्ट काम शुं?–के स्वभावनी आराधना.
* स्वभावनी आराधना ए ज मुमुक्षु जीवनुं काम.
* सर्वे शास्त्रोनो सार शुं?–स्वभावनी आराधना करवी ते.
(१४०) धर्मी जीव
धर्मी जीव अंतरअनुभवथी पोताना स्वभावने देखीने परम प्रसन्न थाय छे. चैतन्यना