Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : आत्मधर्म : ६प :
ते नो तुं बो ध पा म...के जे ना थी
स मा धि म र ण नी प्रा प्ति था य
(चैत्र पांचमना प्रवचनमांथी: राजकोट)
जुओ, श्रीमद् राजचंद्रजीनी समाधिनो आजे दिवस छे. तेमणे १८–१९
वर्षनी उंमरमां आ वचन कह्युं छे के अरे जीव! तेनो तुं बोध पाम के जेनाथी
समाधिमरणनी प्राप्ति थाय. अज्ञानमां असमाधिभावे अनंतवार मरण कर्या, अनंत
देह छोडया, पण चैतन्यना भानपूर्वक एकवार समाधिभावे देह छोडे....तो फरीने
देह ज न रहे.
लघुवयथी अद्भुत थयो....तत्त्वज्ञाननो बोध,
ए ज सूचवे एम के गति–आगति का शोध?
नानपणथी ज तत्त्वना घणा संस्कार हता पूर्व भवे आत्माए क््यांय सारो
सत्समागम सेव्यो हतो ने भविष्यमां पण आत्माना आनंदना वेदन सहित ज ज्यां
जशुं त्यां जशुं, चैतन्यनुं भान हवे भूलाशे नहि परना लक्षे तो जीवो देह छोडे ज छे,
पण स्वना ध्याने ज्ञानी समाधिमरणे देह छोडे छे, ते अपूर्व छे. एकवार एवा भावे देह
छोडे तेने फरी जन्ममरण रहे नहि.
श्रीमद्राजचंद्रजीनो देह आ चैत्र वद पांचमे (६४ वर्ष पहेलां) राजकोटमां
समाधिमरणपूर्वक छूटयो हतो; तेओ कहे छे के अरे जीव! एकवार निज स्वरूपनो बोध
तो कर...
जगतने मरण तणी बीक छे रे....
ज्ञानीने तो आनंदनी लहेर जो....
भव जेनामां नथी, विकार जेनामां नथी एवा भगवान, आत्माना भानपूर्वक
समाधिभावे एकवार देह छूटयो तेने अनंतकाळना असमाधिमरणनो अंत आवी जाय छे.
पोताने आत्माना अनुभव सहित भवअंतना भणकार आवी गया हता. तेथी कहे छे के–