गुरुदेवे घणी सुगम शैलीथी बालोपयोगी बोध आप्यो हतो ने कह्युं हतुं के “एम
विचारी अंतरे, शोधे सद्गुरु योग; काम एक आत्मार्थनुं, बीजो नहि मन रोग”
अहींना बाळको माटे ‘जैनबाळपोथी’ आपवामां आवी हती.
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करवामां आव्युं हतुं.
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सरकार अने श्वेतांबर जैनसमाज वच्चे एकपक्षी करार थयेल छे अने जे दि.
जैनसमाजमां हक्कोने अन्यायकर्ता छे–तेना विरोधनो प्रस्ताव सर्वानुमते पसार
करवामां आव्यो हतो, तथा माननीय राष्ट्रपति, वडाप्रधान वगेरेने ते ठराव मोकली
आपवामां आव्यो हतो. सौराष्ट्रभरमां, तेमज गुजरात मुंबई अने भारतना घणा
स्थळोएथी आ प्रकारना विरोधना ठरावो करवामां आव्या छे. सम्मेदशिखर तीर्थना
प्रतापे आ प्रश्ननो तुरतमां योग्य नीवेडो आवी जाय–एवी आशा राखीए. (प्रस्ताव
नीचे मुजब छे–)
समाजके मध्य जो शाश्वत तीर्थधाम श्री सम्मेदशिखरजी [पार्श्वनाथहिल] के बारे
में इकरार नामा हुआ है वह एकपक्षीय तथा–अन्यायपूर्ण है।
साथ किया जाएगा उस में दिगम्बर जैन समाज के हको का ख्याल रखा जाएगा
तथा समान प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। लेकिन उसके विपरीत उस ईकरार नामे
में दिगम्बर जैन समाज के अधिकारों व स्थापित हकोंका कोई भी उल्लेख नही
किया गया है। और न दिगम्बर जैन समाज को पक्षकार ही बनाया गया है जैसे
के दिगम्बर जैन समाज को ईस पर्वत से तथा उसकी पवित्रता से कोई संबंध
ही न हो। यहां तक कि दिगम्बर समाज का ईकरार नामा में कही भी नामोल्लेख
तक नहीं है बल्कि श्वेताम्बर समाज के जो एक नहीं थे उन्हे मान्य