Atmadharma magazine - Ank 260
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १२: आत्मधर्म :जेठ:
बीजना चंद्रनी त्रण कळा
सम्यक्त्वनी बोधिबीज त्रण कळा सहित ऊगी छे
ते वधीवधीने केवळज्ञानरूपी सोळ कळाए खीलशे
० ० ० ० ०
भेदज्ञान कळानो अपूर्व महिमा बतावीने
शुद्धात्मअनुभवनो उत्साह जगाडनारुं वैशाख सुद बीजनुं मंगल–प्रवचन
धर्मनी अपूर्व मंगल वात छे. भेदज्ञाननी छीणी वडे अंदर स्वभावने अने
आत्माए चैतन्यधातुने निजस्वभावमां धारी राखी छे, विकारने धारी राख्यो
अमास होय तोपण चंद्रनी एक कळा तो खुल्ली होय ज, ते सर्वथा कदी न
अवराय; एकमे बे कळा ने बीजे त्रण कळा–एम वधीने पूर्णिमाए सोळकळा खीले; तेम
चिदानंद– स्वभावना सम्यग्दर्शनरूपी बीज ज्यां प्रगटी त्यां दर्शन–ज्ञान–चारित्र त्रणेनी
कळा भेगी छे, त्रणेना अंशो चोथा गुणस्थानथी ज शरू थई जाय छे; ते वधी वधीने
पूर्ण केवळ–