Atmadharma magazine - Ank 260
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ: आत्मधर्म :१३:
ज्ञानरूपी सोळकळा थतां सादिअनंत टकी रहे छे. ते मंगळ छे. तेना कारणरूप
भेदज्ञानरूपी बीज पण मंगळ छे.
आ भेदज्ञान ते धर्मनी अपूर्व क्रिया छे; ते ज धर्मीनुं कार्य छे, तेनो ज धर्मी कर्ता
छे. आ धर्ममां कर्ता–कर्म ने क्रिया अभिन्न छे. क्रियाना त्रण प्रकार छे–देहादिनी क्रियाओ
ते जडनी क्रिया, आत्माथी तद्न जुदी छे. परनी क्रिया मारी ने रागादि भावो मारुं
स्वरूप–एवी जे मिथ्याबुद्धि ते जीवनी विकारी अशुद्ध क्रिया छे, ते अधर्म छे. ने परथी
तथा रागादिथी भिन्न निजस्वरूपमां अंतमुर्ख परिणति करतां जे शुद्धताना अंशो प्रगटे
ते धर्मनी क्रिया छे.
प्रश्न:– अज्ञानीजीवे त्रणमांथी कई क्रिया करी छे?
उत्तर:– अज्ञानीए विकारना कर्तापणारूप एक अशुद्ध क्रिया ज अनादिथी करी
छे; जडनी क्रिया ते कदी करी शकतो नथी ने धर्मनी क्रियाने ते ओळखतो नथी. भाई,
तारी साची हितनी क्रिया तो आ भेदज्ञान करवुं ते छे. भेद पडीने भान थाय ने
परिणति फरे त्यारे धर्म थाय.
प्रश्न:– आवुं भेदज्ञान करवुं तो कठण छे?
उत्तर:– भाई, कठण छे पण अशक््य तो नथी ने? प्रयत्नवडे थई शके तेवुं छे.
माटे अंतर्मुख अभ्यास वडे आवुं भेदज्ञान थई शके छे. कदी तें साचो अभ्यास अंतरमां
कर्यो नथी. कठण वस्तु पण अभ्यासवडे साध्य थई जाय छे. कठण पथरा पण दोरीना
सतत घसारा वडे घसाय छे, तो चैतन्यतत्त्वनो अनुभव अत्यंत कठिन होवा छतां,
स्वानुभवना सतत अभ्यास वडे ते अनुभव थाय छे. पण ते माटे बीजो प्रेम छूटीने
चैतन्यनो परम प्रेम जागवो जोईए.
जेने चैतन्य स्वभावनो प्रेम नथी ने रागादिनो प्रेम छे तेने चैतन्य उपर क्रोध
छे, पोताना उपर ज पोताने क्रोध छे. पोताना स्वभावनी अरुचि एनुं नाम क्रोध.
आवो क्रोध होय त्यां तो चैतन्यनो अनुभव क््यांथी थाय? पण जेणे रागनी रुचि
छोडीने चैतन्यनो प्रेम प्रगट कर्यो तेने अंतरंग अभ्यास वडे, अत्यंत दुर्लभ एवो
चैतन्य अनुभव पण सुलभ थई जाय छे. ने आवो अनुभव करतो ते ज करवा जेवुं छे.
भाई, महिमा तो स्वभावनो होय के महिमा विकारनो होय? स्वभावनो
महिमा छे. तेना ख्याल वगर ते कठण लागे, पण ते स्वभावनो महिमा ख्यालमां
आवतां ते तरफनो पुरुषार्थ ऊपडे छे. अने, अत्यंत कठण होवा छतां उग्र प्रयत्नवडे ते
भेदज्ञान करे छे. अनंत आत्माओ आ रीते भेदज्ञान करीने मुक्ति पाम्या छे. आ कांई
न थई शके एवुं नथी. अपार महिमावंत अने दुर्लभ छे–ए वात साची, पण साचा
पुरुषार्थ वडे भेदज्ञान करतां तेनी प्राप्ति जरूर थाय छे. केमके.
सर्व जीव छे सिद्धसम
जे समजे ते थाय.