: जेठ: आत्मधर्म :१प:
भगवाननो
अवतार
राजकोटमां पंचकल्याणक प्रतिष्ठा–महोत्सव प्रसंगे भगवान आदिनाथना
जन्मकल्याणक दिवसे (वैशाख सुद नोमे) पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी.
आजे पंचकल्याणक महोत्सवमां भगवाननो जन्मकल्याणक थयो. अहीं आत्माना
अनुभवमां भगवाननो अवतार केम थाय एटले के सम्यग्दर्शन केम थाय तेनी वात छे.
अंतरमां मति–श्रुतने स्वसन्मुख करीने जेणे शुद्धआत्मानो अनुभव कर्यो तेने निर्विकल्प
अनुभूतिमां भगवान आत्मानो जन्म थयो, तेनी परिणतिमां प्रभु पधार्या.
आत्मा शुद्ध छे, अशुद्ध छे–एवा विकल्पमां अटकतां शुद्ध आत्मानो अनुभव
थतो नथी. जे शुद्ध आत्मवस्तु छे तेने एकपणे अनुभवमां लेतां निर्विकल्पता थाय छे
ने पर्यायमां भगवान आत्मानी प्रसिद्धि थाय छे. गुणगुणीभेदना आश्रये पण रागनी
उत्पत्ति थाय छे. ज्ञानस्वभावने ज्ञानस्वभावपणे ज जुओ तो ते व्यक्त अने प्रगट ज
छे. आवा आत्माने जोवो तेनुं नाम शुद्धनय छे. आ शुद्धनय निर्विकल्प छे, आ रीते
जोतां शुद्धवस्तु देखाय छे ते शुद्धवस्तु सर्वे परभावोनो ध्वंस करनार छे, तेना
अनुभवमां परभावनो प्रवेश ज नथी. शरीरमां, कर्ममां के रागादि परभावमां भगवान
आत्मा अवतरतो नथी, भगवान आत्मा तो शुद्धनयरूप निर्मळ ज्ञानघरमां अवतरे छे.
आवो भगवाननो अवतार थाय ते मोक्षनुं कारण छे.
जुओ, जे भगवंतोना पंचकल्याणक थाय छे ते भगवंतोए पहेलां आ रीते
शुद्धनय– वडे निजात्मानो अनुभव कर्यो हतो, पछी आत्माने पूर्ण साधीने तेओ तीर्थंकर
थया. ए तीर्थंकरोए शुं कह्युं? ते समजीने सम्यग्दर्शननो जन्म केम थाय, तेनी आ वात छे.
पोताना आत्मामां अखंड चैतन्यप्रभुने प्रगट अनुभवमां लेवो ते खरुं कल्याण छे. आवा
पोताना आत्माना भान वगर बीजुं बधुं परभावरूप छे. भगवान आत्मानो स्वभाव तो
सर्व परभावोनो ध्वंस करनार छे. आवा आत्माने जेणे अनुभव्यो तेणे भगवानने
ओळख्या. अरे, चैतन्यना रत्नोथी भरेलो आ भगवान, तेने अज्ञानीओ तूच्छ परभाव
जेटलो मानी ल्ये छे. भाई, क्षणमां केवळज्ञाननी कळा प्रगट करे एवी ताकात
चैतन्यस्वभावमां विद्यमान छे. आवी विद्यमानवस्तुने अनुभवमां ले ए वस्तुमां आठे कर्मो
नथी, तीर्थंकरप्रकृतिनां रजकणो बंधायेला पड्यां होय पण तेनो चैतन्यमां अभाव छे; अने
रागादि परभावोनो पण एनामां अभाव छे. आवा