: १८: आत्मधर्म :जेठ:
जुओ, आ अनित्यभावना! मातानी गोदमां आव्या पहेलां तो शरीर
अनित्यतानी गोदमां आवी गयुं छे, पुत्रने माताए देख्या पहेलां ज एनुं आयुष्य
घटवा मांडयुं छे.–आवी देहनी अनित्यता छे. लक्ष्मीनो संयोग वीजळीना झबकारा जेवो
क्षणभंगुर छे, प्रभुता एटले पुण्यना ठाठ, ते पतंगना काचा रंग जेवा क्षणिक छे,
आयुष्य ते पाणीना तरंग जेवुं अत्यंत चंचळ छे, ने कामभोग ते ईन्द्रधनुष जेवा
क्षणभंगुर छे; अरे, आवा क्षणभंगुर विषयभोगोमां शुं राचवुं?–आम संसारनी
अनित्यता विचारी, राग तोडी भगवान निजस्वरूपमां लीन थवा तैयार थया.
त्यारे लोकांतिक देवो आवीने अनुमोदनाथी कहे छे के: प्रभो! आपे वैराग्य
पामीने दीक्षानो विचार कर्यो–ए बहु सारूं कर्युं. प्रभो! आपना विचार बहु सारा छे.
आपनी भावना उत्तम छे. प्रभो! अहींथी मनुष्यभव पामीने अमे पण आवी
मुनिदशाने ज झंखी रह्या छीए. धन्य आपनो अवतार! आप केवळज्ञान पामशो ने
आपनी वाणी जगतना घणा जीवोने आत्महितनुं कारण थशे. धन्य आपनो अवतार,
ने धन्य आ मुनिदशा!
भगवान तो मुनि थवा वनमां चाल्या; अयोध्याना नगरजनो आश्चर्यथी
नीहाळी रह्या. असंख्यवर्षोथी आ भरतक्षेत्रमां मुनिदशा न हती, आजे दीक्षा लईने
ऋषभदेव भगवाने भरतक्षेत्रमां मुनिमार्ग खुल्लो कर्यो. भगवान तो चिंतवे छे के:–
अनंतकाळनो आ राग छोडीने हवे अमे अमारा स्वरूपमां रहेवा मांगीए
छीए. अस्थिरतानो आ राग अमारा कारणे हतो तेथी अमे संसारमां रह्या हता, हवे
ए राग तोडीने अमे अमारा आनंदस्वरूपमां जईए छीए. रागमां दुःखनो अनुभव
हतो ते छोडीने अमे अनंतसुखना धाम सेवा निजस्वरूपमां ठरीए छीए.
अनंत सुख नाम दुःख त्यां रही न मित्रता
अनंत दुःख नाम सौख्य प्रेम त्यां विचित्रता;
उघाड न्यायनेत्रने नीहाळ रे नीहाळ तुं,
निवृत्ति शीघ्रमेव धारी ते प्रवृत्ति बाळ तुं.
अरे, अनंत सुखनुं धाम एवो आ आत्मा छे. तेमां ठर्ये ज सुख छे, ए सिवाय
परभावमां क््यांय सुख नथी. माटे ए परभावनी प्रवृत्ति छोड रे छोड! ने
निजस्वरूपमां ठर भगवाने तो आजे साक्षात् निवृत्त लईने मुनिदशा प्रगट करी.
मुनिपणाना आनंदनी लहेरमां भगवान झूलता हता, तेमां जराय दुःख न हतुं. छठ्ठा ने
सातमा गुणस्थाने वारंवार निर्विकल्प अतीन्द्रिय आनंदने भगवान अनुभवता हता.
तीर्थंकरोने दीक्षा पहेलां जातिस्मरण ज्ञान थतां वैराग्यनी धारा एकदम वधी
जाय छे, ने वैराग्यनी धूनमां एवा मस्त थाय छे के दीक्षा लेवाथी कोने आघात थाय छे
ते जोवा रोकाता नथी. अरे, अमे कोईना कारणे संसारमां रह्या न हता; हवे अमे राग
तोडीने अमारा स्वरूपमां ठरवा तैयार थया, तेमां अमने कोई रोकी शके