Atmadharma magazine - Ank 260
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : आत्मधर्म : ३ :
साथे संबंधवाळा होवाछतां ते खरेखर जीव नथी, जीवना शुद्धस्वभावना अनुभवमां
तेनो प्रवेश नथी तेथी खरेखर ते अजीव छे. आत्मा तो तेने कहेवाय के जे शुद्ध
शुद्धजीवनो अनुभव करतां शरीर अने कर्मनी जे रागादि भावकर्म पण भिन्नपणे
ज अनुभवाय छे. १४८ प्रकृति (जेमां तीर्थंकरप्रकृति पण आवी जाय छे) तेना
निमित्तभूत जेटला परभावो अशुभ के शुभ छे ते बधाय शुद्ध जीवथी भिन्न छे, एटले
अजीव छे, चेतन जेवा देखाय छे तो पण खरेखर ते चेतनना स्वभावभूत नथी, शुद्ध
चेतनस्वरूप जीवना अनुभवनमां तेमनो प्रवेश नथी, तेथी शुद्ध जीवथी ते भिन्न छे.
प्रश्न:– आपे विभाव परिणामोने जीवस्वरूपथी भिन्न कह्या, तो ते भिन्न एटले
शुं तेनो भावार्थ अमे समज्या नहि. भिन्न कहेतां ते वस्तुस्वरूप छे, के अवस्तुरूप छे?
उत्तर:– शुद्ध चैतन्यथी भिन्न कह्या, एटले शुद्ध चैतन्यस्वभावनी द्रष्टिमां ते
अवस्तुरूप छे. शुद्ध चैतन्यना अनुभवनशील जीवने स्वमां विभाव परिणाम देखाता
नथी. परभावनुं विद्यमानपणुं हतुं ते तो पहेलां बताव्युं, पण स्वानुभवमां तो ते
अवस्तु ज छे, अविद्यमान ज छे. वस्तुना स्वभावभूत जे भाव नथी तेने वस्तुरूपे
अनुभववा ते मिथ्यात्व छे.
संतो अनुभवथी कहे छे के अमे विकारथी भिन्न शुद्ध चैतन्यवस्तुने अनुभवीए
छीए ने तमे पण आवी शुद्ध चैतन्य वस्तुने स्वानुभव वडे अनुभवो. रागादि
परभावोनो वर्जनशील एटले छोडनार आत्मस्वभाव छे; ए शुभाशुभ भावरूप जे
अशुद्ध आचरण छे ते करवा योग्य नथी पण वर्जन करवा योग्य छे, छोडवा योग्य छे;
आत्मानो स्वभाव रागना अनुभवन शील नथी पण शुद्धचेतनना अनुभवनशील छे.
रागादि परभावोने तो दुष्ट कह्या छे, अनिष्ट कह्या छे ने मोक्षमार्गना घातक कह्या छे.
(पृ. ८९) व्यवहारचारित्रना शुभ परिणामने पण एमां ज नांख्या छे. उपादेयरूप
शुद्धभाव छे, ते ज मोक्षनुं कारण छे. जेटली शुद्धता छे तेटलुं ज मोक्षनुं कारण छे, अने
जेटलुं मोक्षनुं कारण छे तेटलुं ज उपादेयरूप छे; जेटली अशुद्धता छे तेटलुं बंधनुं कारण
छे ने जेटलुं बंधनुं कारण छे तेटलुं छोडवा योग्य छे.
परभावो अनिष्ट छे एटले के ईष्ट नथी; धर्मात्माने ते प्रिय नथी. धर्मात्माने
ईष्ट वहालो ने प्रिय तो पोतानो शुद्ध चैतन्यस्वभाव ज छे. परभाव जेने प्रिय छे तेने