Atmadharma magazine - Ank 261
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : आत्मधर्म : ९ :
वस्तुद्रष्टि; आवी द्रष्टिथी–स्वानुभवना अतीन्द्रियआनंदसहित शुद्ध वस्तुने देखवी–ते
मोक्षमार्ग छे. जेवी वस्तु छे तेवी द्रष्टिथी तेने देखवी ते सम्यक् दर्शन छे; वस्तु अने एने
देखनारी द्रष्टि बन्ने एक जातना थाय. शुद्धवस्तु कांई रागरूप नथी, एटले तेने
देखनारी द्रष्टि पण रागरूप नथी. शुद्धआत्मवस्तु निर्विकल्प, तेने देखनारी द्रष्टि पण
निर्विकल्प; तेनी साथे सम्यग्ज्ञान ने चारित्र पण आवी जाय छे; एटले शुद्धवस्तुने
स्वानुभवथी देखवी ते मोक्षमार्ग छे. शुद्धज्ञानचेतनावडे शुद्ध चैतन्यवस्तुने चेतवी–
अनुभववी ते मोक्षमार्ग छे. सम्यग्ज्ञान–दर्शन–चारित्र ए त्रणे ज्ञानचेतनामां समाई
जाय छे.
जीवनी चेतना त्रण प्रकारनी छे–
ज्ञानचेतना;
कर्मचेतना;
कर्मफळचेतना
ज्ञानचेतना ते शुद्धचेतना छे, ते जीवना स्वभावभूत छे, ते मोक्षमार्ग छे.
बीजी बे चेतना रागादिरूप अशुद्ध छे, ते विभावरूप छे, ते मोक्षमार्ग नथी.
अज्ञानीने अनादिथी अशुद्धचेतना छे; चेतना विकारमां ज तन्मय थईने
विकारने ज वेदे छे, ते अनुभवमां सम्यक्त्व नथी. चेतना साची तेने कहेवाय के पोताना
चैतन्य– स्वभावने चेते–अनुभवे; आवो अनुभव जीवे पूर्वे कदी प्रगट कर्यो नथी.
चेतना अंतमुर्ख थईने पोताना चेतनामात्र वस्तुस्वरूपने आस्वादे–अनुभवमां ल्ये–ते
ज सम्यक् चेतना छे, ते ज मोक्षमार्ग छे.
शुद्ध जीववस्तु एकत्वमां नियत छे, एटले पोताना शुद्धस्वरूपमां ज रहेली छे. ते
पोताना निर्मळ गुण–पर्यायोमां ज रहेली छे,–परभावमां जरापण जती नथी. आम
शुद्धआत्मानुं स्वरूप द्रढ करीने तेने द्रष्टिमां ल्यो....तेने स्वानुभवमां ल्यो.
अहो, शुद्धवस्तुस्वरूपने केवुं मलाव्युं छे! एना अनुभवनो जे अपार महिमा छे
ते ज प्रसिद्ध कर्यो छे.
स्वानुभवना अचिंत्य आनंदनो स्वाद ज्ञानी ल्ये छे.
अज्ञानी शेनो स्वाद ल्ये छे? एने शुद्धआत्मानो स्वाद नथी, तेमज जडवस्तुना
रसनो स्वाद पण कांई जीवमां नथी आवतो; ते अशुद्धवचेतनावडे राग–द्वेष हर्ष–
शोकनी आकुळतानो ज स्वाद ल्ये छे. अनादिथी अज्ञानदशामां जीवोने अशुद्धचेतनाना
स्वादनो