Atmadharma magazine - Ank 261
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : आत्मधर्म : ११ :
शुद्धोपयोग समान बीजुं कोई नथी
(बधा धर्मो शुद्धोपयोगमां समाय छे)
(परमात्मप्रकाश–प्रवचनोमांथी)
आत्माना अनुभव वगर शुद्धभाव नहीं, ने
शुद्धभाव वगर धर्म नहीं; सम्यक्त्व ते पण शुद्धभाव
छे. सम्यक्त्वथी मांडीने सिद्धपद सुधीना बधा पद
शुद्धभावमां समाय छे. आ रीते शुद्धभाव ते धर्म छे;
ते ज मुमुक्षुनो मनोरथ छे. आ आत्मा शुद्धोपयोगरूपे
परिणमे ते ज मनोरथ छे.
शुद्ध आत्मानी अनुभूतिरूप शुद्धभाव जेने नथी तेने शुभभावरूप महाव्रत के
प्रतिक्रमणादि होय तोपण संयम नथी. शुद्धभाव वडे ज संयम होय छे; शुद्धभाव वगर
बधुं निरर्थक छे. अने शुद्धभाव पण परम आत्मतत्त्वना अनुभव वगर होतो नथी.
आ रीते शुद्धात्मानो अनुभव ते मूळ वस्तु छे. संयम एटले मुनिदशा अर्थात् छठुं–
सातमुं गुणस्थान, ते शुद्धभाव वगर होतुं नथी; ने आत्माना अनुभव वगर शुद्धभाव
होतो नथी.
चैतन्यतत्त्व रागथी भिन्न शुं चीज छे एनुं जेने भान नथी ने रागमां ज
एकमेक– पणे आत्माने अशुद्ध अनुभवे छे ते जीवने शुभराग वखते पण परमार्थे
आर्तध्यान ज छे; शुद्ध आत्मा शुं चीज छे एनी जेने खबर पण नथी तेने आत्मानुं
ध्यान क्यांथी होय? आत्माने ओळख्या वगर शुभराग करे तेथी शुं?–तेनाथी आत्माने
धर्मनो लाभ किंचित नथी. अहो, निर्विकल्प आनंदनो पिंड आत्मा तेनो अनुभव थतां
सम्यग्दर्शन थाय ने पछी संयम होय, एना वगर तो संयम के मोक्षमार्ग होतो नथी.
आत्माना अनुभव वगर अज्ञानी जे व्रतादि करे छे तेमां तेने आकुळतारूप बळतरा ज
छे, तेमां जराय निराकूळ शांति तेने नथी; शांतिनुं जे धाम छे तेमां तो तेनो प्रवेश नथी.
जगतमां प्रत्येक छ मास ने आठ समयना काळमां ६०८ जीवो मोक्ष पामे छे;
एटला ज जीवो क्षपकश्रेणी मांडीने केवळज्ञान पामे छे; शुद्धात्माना अनुभववडे ज तेओ
मोक्ष अने केवळज्ञान पामे छे. भले व्रतादि शुभराग करे पण शुद्धात्माना अनुभव
वगर कोई जीव मोक्ष पामी शके नहि, धर्म पामी शके नहि.
शुद्ध उपयोगमां बधुं समाय छे, ते ज मोक्षमार्ग छे ने जगतमां ते ज मुख्य छे–
ए वात (गा. ६७मां) कहे छे.