Atmadharma magazine - Ank 261
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : अषाड :
सुद्धहँ संजमु सीलु तउ सुद्धहँ दंसणु णाणु।
सुद्धहँ कम्मक्खउ हवइ सुद्धउ तेण पहाणु।।
मोक्षमार्ग शुद्धोपयोगमां समाय छे. मुनिपणुं पण शुद्धोपयोगीने ज होय छे.
परमार्थ संयम, शील, व्रत, तप वगेरे बधाय बधा धर्मो शुद्ध उपयोगमां समाय छे.
शुद्धोपयोगपूर्वक ज सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान थाय छे. शुभरागवडे सम्यक्त्वादि थतां
नथी के मुनिदशा होती नथी. साधकदशा ज शुद्धोपयोगवडे थाय छे. जेटली शुद्धता तेटलो
ज मोक्षमार्ग. भाई, एकलुं परलक्षी ज्ञान पण ज्यां मोक्षमार्ग नथी त्यां रागनी शी
वात! उपयोगने अंतर्मुख एकाग्र करीने आत्मा पोते पोतामां प्रवर्ते ते निश्चयथी शील
छे, तेमां रागादि परभावरूप अब्रह्मनो त्याग छे, ने शुद्धभावनी रक्षा छे. आवा
शुद्धोपयोग वडे ज केवळज्ञानादि थाय छे. प्रवचनसारमां आवा शुद्धोपयोगनी अत्यंत
प्रशंसा करतां श्री कुंदकुंदस्वामी कहे छे के–
रे शुद्धने श्रामण्य भाख्युं, ज्ञान–दर्शन शुद्धने
छे शुद्धने निर्वाण, शुद्ध ज सिद्ध; प्रणमुं तेमने.
आत्मानो जे शुद्धभाव छे ते ज खरेखर धर्म छे; एना विना जीव संसारनी चार
गतिमां भमी रह्यो छे. शुद्धभाव वगरना जीवने सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र,
केवळज्ञान के मोक्ष कांई होतुं नथी. शुभरागवडे कोईने केवळज्ञान के सम्यग्दर्शनादि थतुं
नथी. आत्मानी निर्मळपर्यायरूप जेटला धर्मो छे ते बधा धर्मो शुद्धोपयोगमां समाय छे.
माटे शुद्धोपयोग ते ज धर्मनुं सर्वस्व छे, ने ते ज धर्मनो मनोरथ छे, ते ज प्रसंशनीय
छे. आ शुद्धोपयोगथी ऊंचु जगतमां बीजुं कांई नथी. शुभोपयोग ते प्रसंशनीय नथी;
शुभोपयोग ते सम्यग्दर्शन नथी, शुभोपयोग ते सम्यग्ज्ञान नथी, शुभोपयोग ते
मुनिदशा नथी, शुभोपयोग ते मोक्षमार्ग नथी, शुभोपयोगथी केवळज्ञान के निर्वाण
नथी; सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र, मोक्षमार्ग, केवळज्ञान ने सिद्धपद–ए
बधुंय शुद्धोपयोगमां समाय छे. माटे आत्मानो जेवो शुद्ध स्वभाव छे तेवो जाणीने तेमां
सिद्धभगवंतोनो पंथ तो एक शुद्धभावरूप ज छे; शुद्धभावथी जे चलायमान
थाय ते मुनि मोक्ष पामी शकता नथी. जीव गमे ते देशमां जाय ने गमे ते करे पण
गमे तेटला क्रियाकांड करे, शुभ परिणाम करे, परंतु जीवने परिणाममां ज्यां शुद्धता
नथी, एटले के आत्मानो अनुभव नथी ने तेमां स्थिरता नथी तो जीवने मोक्ष थतो