Atmadharma magazine - Ank 261
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : अषाड :
अनुभवमां प्रकाशती
ज्ञानज्योति
शुद्धचैतन्यवस्तु स्वानुभवमां प्रकाशे छे ते
शुद्धनयने आधीन छे; शुद्धवस्तु रागने आधीन नथी,
वस्तु विकल्पने आधीन नथी. वस्तु वचनने आधीन
नथी; वस्तु तो शुद्धनयने आधीन छे.
(कलशटीका–प्रवचन)

निर्विकल्प–शुद्धनयवडे शुद्धआत्मानी अनुभूति थई ते अनुभूति केवी छे? तेमां
नवना विकल्पो नथी, नवतत्त्वना विकल्पोथी पार शुद्धचैतन्यज्योति एकपणे प्रकाशे छे.
समयसारनी १३ मी गाथामां भूतार्थनयथी जे सम्यग्दर्शन थाय तेनुं वर्णन छे; तेना
उपोद्घातरूपे आ सातमो श्लोक छे–
अतः शुद्धनयायत्तं प्रत्यग्ज्योतिश्चकास्ति तत्।
नवतत्त्वगतत्त्वेपि यदेकत्वं न मुंचति।।७।।
जेना अनुभवथी सम्यक्त्व थयुं ते वस्तुनुं आ वर्णन छे. शुद्धनय एटले वस्तुमां
अभेद थयेलुं ज्ञान; ते ज्ञान शुद्धवस्तुमात्र छे; ने तेने ज आधीन वस्तुनो अनुभव छे.
वस्तु रागने आधीन नथी, वस्तु विकल्पने आधीन नथी, वस्तु वचनने आधीन नथी,
वस्तु तो पोताना स्वभावने ज आधीन छे. तेनो अनुभव तेना ज आश्रये थाय छे.
अनुभवमां समकितीने आवो शुद्धआत्मा प्रकाशे छे.
कोई कहे के आत्मा संसारथी छूटीने सिद्ध थाय त्यारे ज तेने शुद्धवस्तु कहेवाय.–
तो कहे छे के द्रव्यद्रष्टिथी विचारतां जीववस्तु त्रिकाळ शुद्ध छे. पर्यायमां जे रागादि छे
तेने खरेखर वस्तु कहेता नथी. वस्तु तो पोताना ज्ञायकरसनो पिंड छे.–तेना
अनुभवथी अत्यारे सम्यक्त्व थाय छे. पर्यायनी अशुद्धताना अनुभववडे सम्यक्त्व थतुं
नथी.