Atmadharma magazine - Ank 261
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : आत्मधर्म : १प :
प्रश्न:– अनुभव करवो एटले शुं?
उत्तर:– स्वभावने अनुसरीने–तेमां तन्मय थईने भववुं एटले के परिणमवुं ते
पर्यायमां नवतत्त्वना भेद होवा छतां, एटले के पर्यायमां भूमिकाअनुसार
जेम अग्निनो दाहकस्वभाव छे, लाकडुं–तृण–छाणुं वगेरेने ते बाळे छे, त्यां ते–ते
व्यवहारने जूठो कहेतां केटलाक भडकी ऊठे छे; पण आ ४०० वर्ष पहेलां श्री
जुओ, आ सम्यक्त्वनी रीत! पर्यायमां नवतत्त्वना विचाररूप व्यवहार ते
सत्य, ए शुद्धवस्तुनी अनुभूतिमां व्यवहार असत्य; ए नवतत्त्वना व्यवहारमां ज
जेनी भूल होय तेने तो पर्यायनुंय ज्ञान नथी, तेनो व्यवहार पण खोटो छे.