Atmadharma magazine - Ank 261
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 23 of 37

background image
: २० : आत्मधर्म : अषाड :
शुभ–अशुभ वखते पण ए श्रद्धानुं सळंगपणुं समजाववा अहीं शाहुकार एटले
के प्रमाणिक गुमास्तानुं द्रष्टांत आप्युं छे. जेम प्रमाणिक मुनीम पोताना शेठना बधा
कार्यो जाणे पोताना ज होय ए रीते करे छे, वेपारमां लाभ–नुकशान थाय त्यां हर्ष–खेद
करे छे, आ अमारी दुकान, आ अमारो माल एम कहे छे; ए रीते शेठना कार्योमां
परिणाम लगाववा छतां अंदरमां ते समजे छे के आमां मारुं कांई नथी, आ बधुं पारकुं
(शेठनुं) छे. तेम धर्मात्मा जीव पण रागनी भूमिकाअनुसार विषय–कषाय–क्रोध–मान–
वेपारधंधा–रसोई वगेरे अशुभप्रवृत्तिमां के पूजा–भक्ति–दया–दान–यात्रा–स्वाध्याय–
साधर्मीप्रेम वगेरे शुभप्रवृत्तिमां उपयोगने लगावे छे. छतां उपरोक्त गुमास्तानी जेम
ते समजे छे के आ देहादिनां कार्यो के आ रागादिभावो ते खरेखर मारां नथी, मारा
स्वरूपनी ए चीज नथी. ते रागादि वखते तेमां तद्रूपपणे आत्मा परिणम्यो छे, अर्थात्
आत्मानी ज ते पर्याय छे, परंतु शुद्धस्वभाव पोते ते रागरूप थई गयो नथी. जो आवुं
शुद्धात्मानुं श्रद्धान न राखे ने रागादिने के देहादिनी क्रियाने खरेखर पोतानुं स्वरूप माने
तो ते जीव मिथ्याद्रष्टि छे. जेम गुमास्तो जो शेठनी वस्तुने खरेखर पोतानी ज समजीने
पोताना घरे उपाडी जाय तो ते प्रमाणिक न कहेवाय पण चोर कहेवाय; तेम पारकी
एवी देहादि क्रियाने के पारका एवा रागादि भावोने जे खरेखर पोताना मानीने तेने
पोतानुं स्वरूप ज समजी ल्ये ते जीव मिथ्याद्रष्टि छे. ‘आ मारूं नथी, आ शेठनुं छे’ एम
गुमास्ताने कांई सदाय गोखवुं नथी पडतुं, दरेक कार्य वखते एने ए प्रतीत अंदर वर्त्या
ज करे छे, तेम ‘आ शरीर मारुं नथी, आ राग मारो नथी, हुं शुद्धात्मा छुं’ एम धर्मीने
कांई सदाय गोखवुं नथी पडतुं, दरेक क्षणे–शुभाशुभ वखते पण एने समस्त परद्रव्यो
अने समस्त परभावोथी भिन्न शुद्धात्मानी जे प्रतीत थई छे ते वर्त्या ज करे छे.
जुओ, आ सम्यग्द्रष्टिनी अंदरनी दशा! सम्यक्त्वनी केवी सरस चर्चा करी छे!
अहा, धन्य छे साधर्मीओने के जेओ आवी स्वानुभवनी चर्चा करे छे. स्व–परनुं यथार्थ
भेदज्ञान कहो, तत्त्वार्थश्रद्धान कहो, भूतार्थनो आश्रय कहो, शुद्ध नय कहो के
शुद्धात्मश्रद्धान कहो, ते निश्चय सम्यक्त्व छे. आवी दशा प्रगट्या वगरनो जीव, भले
जैनधर्ममां ज देव–गुरु–शास्त्रने मानतो होय ने अन्य कुदेवादिने मानतो न होय
तोपण, तेने सम्यक्त्व कहेता नथी, धर्मी कहेता नथी; माटे स्वपरना यथार्थ
भेदज्ञानपूर्वक तत्त्वार्थश्रद्धान करीने स्वानुभवसहित शुद्धात्मश्रद्धान करवुं; ते ज
सम्यक्त्व छे. ते ज मोक्षमार्गनुं पहेलुं रत्न छे, ने ते ज पहेलो धर्म छे. प्रसन्न थईने
आत्मानी प्रीतिपूर्वक आवा सम्यक्त्वादिनी वात उत्साहथी सांभळे ते पण महान
भाग्यशाळी छे. तेमां ऊंची