Atmadharma magazine - Ank 261
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : अषाड :
अहीं ए प्रश्न समजावे छे के शुभ–अशुभमां उपयोग वर्ततो होय त्यारे
सम्यक्त्वनुं अस्तित्व कई रीते होय?–भाई जी! समकित ए कांई उपयोग नथी,
समकित ए तो प्रतीति छे. शुभाशुभमां उपयोग वर्ततो होय त्यारे पण शुद्धात्मानुं
अंतरंगश्रद्धान तो धर्मीनुं एवुं ने एवुं वर्ते छे; स्व–परनुं जे भेदविज्ञान थयुं छे ते तो
ते वखते पण वर्ती ज रह्युं छे. आ शुभ–अशुभ मारो स्वभाव नथी, हुं तो शुद्धचैतन्य
स्वभाव ज छुं–एवी निश्चय अंतरंगश्रद्धा धर्मीने शुभ–अशुभ वखतेय खसती नथी.
जेम गुमास्तो शेठना कार्योमां प्रवर्ते छे, नफो–नुकशान थतां हर्ष–विषाद पण पामे छे.
छतां अंतरमां भान छे के आ नफा–नुकशाननो स्वामी हुं नथी. जो शेठनी मिलकतने
खरेखर पोतानी मानी ल्ये तो तो चोर कहेवाय. तेम धर्मात्मानो उपयोग शुभ–
अशुभमां य जाय छे, शुभ–अशुभरूपे परिणमे छे, तोपण अंतरमां ते ज वखते तेने
श्रद्धान छे के आ कार्य मारां नथी, तेनो स्वामी हुं नथी, शुद्धउपयोग वखते जेवी प्रतीत
वर्तती हती, अशुभ उपयोग वखते पण एवी ज प्रतीत शुद्धात्मानी वर्ते छे. एटले तेने
शुभ अशुभ वखतेय सम्यक्त्वमां बाधा आवती नथी. जो परभावोने पोताना माने के
देहादि परद्रव्यनी क्रियाने पोतानी माने–तो तत्त्वश्रद्धानमां विपरीतता थाय एटले
मिथ्यात्व थाय.
वळी, निर्विकल्पता वखते निश्चय सम्यक्त्व, ने सविकल्पता वखते
व्यवहारसम्यक्त्व एम पण नथी. चोथा गुणस्थाने मिथ्यात्वने नष्ट करीने निर्विकल्प
स्वानुभूतिपूर्वक शुद्धात्मप्रतीतरूप जे सम्यग्दर्शन प्रगट्युं छे ते निश्चय सम्यग्दर्शन छे;
अने आ निश्चय सम्यग्दर्शन सविकल्प के निर्विकल्प बंने दशा वखते एकसरखुं ज छे.
स्वानुभव वखते तो निर्विकल्पता होय छे. सम्यग्द्रष्टिने ज्यारे सम्यग्दर्शन प्रगट्युं त्यारे
तो स्वानुभव अने निर्विकल्पता थई, पण ते निर्विकल्प–स्वानुभवमां सदाकाळ रही शके
नहि. निर्विकल्पदशा लांबो काळ टके नहि; पछी सविकल्पदशामां आवतां शुभ के
अशुभमां उपयोग जोडाय. अने शुद्धात्मप्रतीत तो ते वखतेय चालु ज रहे.–आवी
समकिती महात्मानी स्थिति छे. पोताना शुद्ध आत्मभाव सिवाय बीजा कोईना
स्वामीत्वपणे ते कदी परिणमता नथी.
धर्मीने शुभभाव वखते पण सम्यक्त्व होय छे–एम कह्युं, तेथी एम न समजी
जवुं के ते शुभभाव करतां करतां सम्यक्त्व थई जशे. जो ते शुभभावने स्वभावनी
चीज मानीने तेनुं स्वामीत्व करे अथवा ते शुभभावने सम्यक्त्वनुं कारण माने तो ते
जीवने शुभनी साथे सम्यक्त्व नथी होतुं, पण शुभनी साथे मिथ्यात्व होय छे. शुभ
वखते जेने शुभथी रहित एवा शुद्धात्मानी श्रद्धा वर्ते छे ते ज सम्यग्द्रष्टि छे.
सम्यग्दर्शन थया पछी जो शुभ–अशुभ परिणाम थाय ज नहि तो तो तरत ज