Atmadharma magazine - Ank 261
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : आत्मधर्म : २३ :
वीतरागता ने केवळज्ञान थई जाय. पण एम बधाने बनतुं नथी. सम्यग्दर्शन पछी
पण ज्यां सुधी पोताना स्वरूपमां पूर्ण लीनता न थाय त्यां सुधी पोताना चारित्रनी
नबळाईने लीधे धर्मीने शुभ–अशुभभावोरूप परिणमन थाय छे. धर्मी एने पोतानो
स्वभाव पण जाणतो नथी, तेम ज कर्मे ते कराव्या छे एम पण मानतो नथी, पोताना
गुणनुं परिणमन एटलुं ओछुं छे एटले ते पोतानी ज परिणतिनो अपराध छे.–एम ते
समजे छे. आ रीते सम्यक्प्रतीतिरूप सम्यग्दर्शन तेने वर्ते छे.
आ रीते सम्यग्द्रष्टिनी सविकल्पदशा बतावी अने ते सविकल्पदशामां सम्यक्त्व
होय छे–ए समजाव्युं. हवे ते सम्यग्द्रष्टि सविकल्पतामांथी फरीने निर्विकल्प कई रीते
सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा निर्विकल्प आत्मध्यान कई
रीते करे छे तथा तेने स्वरूपनुं चिंतन क््या प्रकारे होय
छे, स्वरूपचिंतन करतां शुं थाय छे, अने जिज्ञासुने
पण स्वरूपना ध्यान माटे केवो उद्यम ने केवी
पूर्वविचारणा होय–ते संबंधी मुमुक्षुने उपयोगी सुंदर
लेख आवता अंकमां वांचशोजी.
जडथी अने जडना कार्योथी जुदो, हुं
ज्ञानानंदस्वरूप छुं–एम पोताना स्वभावनो निर्णय
जीवे पूर्वे एक सेकंड पण नथी कर्यो तेथी ते अपूर्व छे.
ए सिवाय बीजुं बधुं पूर्वे करी चूक््यो छे, पण तेनाथी
सांभळीने तेनो अपूर्व निर्णय कर. तारी
अंर्तशक्तिमां सर्वज्ञपणुं पडेलुं छे, तेने भूलीने
पोताने विकार जेटलो तुच्छ माने छे अने हुं जडनां
कार्य करुं–एवुं मिथ्या अभिमान करे छे ते पाप छे ने
दुःखनुं कारण छे. अंतर्मुख थईने पोताना परिपूर्ण
चिदानंद स्वभावनो अपूर्व निर्णय करवो ते धर्म छे ने
सुखनुं कारण छे.