: २४ : आत्मधर्म : अषाड :
वि वि ध व च ना मृ त
(आत्मधर्मनो चालु विभाग लेखांक: १०)
(नोंध: आत्मधर्म अंक २प९ वैशाखमां छपायेला लेखनो नं. ७ ने बदले ८
समजवो तथा तेना सळंग नंबर सुधारीने १३९ थी १४७ समजवा. त्यारबाद अंक
२६० जेठमां छपायेल लेखनो नंबर (७) ने बदले (९) समजवो; अने तेना सळंग
नंबर सुधारीने (१४८) थी (१प३) समजवा.)
(१प४) मोक्षार्थी केवो होय ने शुं करे?
शास्त्रोमां आचार्य भगवान एक शरत करे छे के जे जीव मोक्षनो अर्थी होय, बीजुं
कांई शल्य जेने न होय, एक मात्र अतीन्द्रिय आत्मसुखना अनुभव सिवाय बीजुं कांई
जेने उपादेय नथी, बीजुं कांई जेने प्रिय नथी,–आवो मोक्षार्थी जीव,–ते शुं करे?
ते आनंदनी विरुद्ध एवा समस्त कार्यने आमूलचूल त्याज्य समजे छे; चैतन्यना
परम आनंदनी अनुभूति सिवाय समस्त संकल्प–विकल्प, समस्त अशुभ–शुभ, समस्त
राग–द्वेष तेने जडमूळथी पोताना स्वभावनी बहार समजे छे. मारा स्वभावनी हदमां
ते कोई परभावोनो प्रवेश नथी; मारा अतीन्द्रिय पदमां ते कोई भावो नथी–एम
ज्यारे स्वानुभव करे छे त्यारे मोक्षमार्ग थाय छे.
(१पप) अनुभवजीवन: पछी नहीं परंतु हमणां ज
संतो शुद्ध आत्माना अनुभवनो उपदेश आपे छे केमके तेनाथी ज मोक्षमार्ग थाय
छे. जीवनमां.....पछी नहि परंतु हमणां ज....आवो अनुभव करवा जेवो छे. एवा अनुभव
वगरनुं जीवन ए जीवन उपादेय नथी; अनुभवजीवन ए ज आत्मानुं साचुं जीवन छे.
(१प६) सन्तो भेदज्ञान आपे छे
मारा ज्ञानस्वभावनो महिमा कोई अचिंत्य अपार छे; ए स्वभावना स्वसन्मुख
महिमामां एकाग्र थतां ज विकल्प तूटी जाय छे. ज्ञानभावमांथी राग नीकळी जाय छे,
ज्ञानधारा रागथी जुदी पडी जाय छे–एटले भेदज्ञान थाय छे......ज्ञाननो खरो स्वाद
अनुभवाय छे. आवा भेदज्ञाननुं ने आवा स्वानुभवनुं अद्भुत वर्णन समयसारनां
संवर अधिकारमां कर्युं छे. अहा, भेदज्ञाननी अंतरनी रीत बतावीने संतो जाणे भेदज्ञान
आपी रह्या छे. ए भेदज्ञाननो अधिकार एकान्तचित्ते खूब मनन करवा जेवो छे.