: अषाड : आत्मधर्म : २प :
(१प७) मुनि अने मुमुक्षु
मुनिओनुं जीवन जेम स्वानुभवमय छे, तेम मुमुक्षुनुं जीवन भेदज्ञाननी
भावनामय होवुं जोईए. भेदज्ञाननी भावनानुं फळ स्वानुभवप्राप्ति छे. मुमुक्षु ए पण
मुनिनो नानो भाई छे. मुनिराज महा मुमुक्षु छे, आ हजी नानो मुमुक्षु छे. एनुं जीवन
पण मुनिने अनुसरतुं होवुं जोईए.
(१प८) एक ज धून
जेने बीजानो कोईनो आदर न होय ने चैतन्यनो एकनो ज आदर होय, तेने
तेनी प्राप्ति–अनुभूति केम न थाय? पण जीवने एनी खरी धून लागवी जोईए. बीजी
बधी धून एकवार मनमांथी नीकळी जाय ने एक ज धून रहे तो बधी शक्ति ते तरफ
वळे ने पोताना ईष्टनो अनुभव थाय. हे जीव! अतीन्द्रिय आनंदना स्वादनो स्वादियो
थईने मोक्षना मंगल मंडप तारा आत्मामां रोप.
(१प९) मुमुक्षुना परिणामनो प्रवाह
मुमुक्षुने गृहकार्य–संसारकार्य तरफ परिणाम जेटला ओछा जाय तेटलुं सारुं;
वधुमां वधु परिणाम आत्माना हित तरफना थाय ए खास जरूरी छे. ए परपरिणाम
तो जीवने झट सुगम थई जाय छे, स्वपरिणाम माटे खूब ज जागृत रहेवानुं......सतत
अंतर उद्यमवडे स्वपरिणामने सहज करवाना छे.
(१६०) स्वाध्याय एटले संतो साथे गोष्ठी
मुमुक्षुने वीतरागी संतोनी वाणीनी स्वाध्याय करतां जाणे के ते संतोनी साथे ज
गोष्ठी करता होईए एवो आहलाद बहुमान अने श्रुतभावना जागे छे.
(१६१) जीवना परिणामनी ताकात
आराधनानो काळ असंख्य समयनो छे; असंख्य समयमां आराधनावडे
साधकजीव अनंतकाळना मोक्षसुखने साधे छे, एटले एकेक समयनी आराधनाना
फळमां अनंतकाळनुं सुख पामे छे; आ रीते आराधकभावनुं फळ अनंतगणुं छे.
अने, जींदगीमां संख्यात वर्षना आयुष्यमां पाप करीने जे जीव नरके जाय छे ते
एकेक सेकंडना पापना फळमां असंख्याता वर्षोनुं घोर दुःख पामे छे. एटले थोडा काळना
पापमां असंख्यातगणा काळनुं दुःख वहोरे छे.
जुओ, जीवना परिणामनी ताकात!
उलटा परिणाम करे तो एक क्षणमां
असंख्याता वर्षोनुं दुःख ऊभुं करे,
सुलटा परिणाम करे तो एक क्षणमां
अनंतकाळना मोक्षसुखने पामे