Atmadharma magazine - Ank 261
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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सम्मेदशिखरनी सौथी ऊंची टूंक पर
सं. २०१३ नी यात्रा वखते पारसटूंक (सुवर्णभद्रटूंक)
उपरनी भक्तिनुं एक द्रश्य.
सिद्धभूमिनां सिद्धिधाम देखीया रे, आजे नजरे नीहाळ्‌या आ धाम....आज
धन्य भूमि अने धन्यधूळ छे रे, पुनित पगलां थकी पवित्र......आज
अहो अपूर्व यात्रा आज थाय छे रे, अम अंतरमां आनंद उभराय...आज
अहो अपूर्व यात्रा गुरुजी साथमां रे, अम अंतरमां आनंद उभराय....आज
आज भावे नमो तीर्थराजने रे.
(तीर्थभक्तिनां आवा सेंकडो चित्रोथी सुशोभित “मंगल तीर्थयात्रा” पुस्तक
द्वारा यात्राना मीठा संभारणां वांचीने तीर्थयात्रा जेवो आनंद मेळवो.)