Atmadharma magazine - Ank 261
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 30 of 37

background image
: अषाड : आत्मधर्म : २७ :
रहेलो शुद्ध आत्मा, पदस्थ एटले शब्दना वाच्यरूप शुद्ध आत्मा, रूपस्थ एटले अरिहंत
सर्वज्ञदेव तथा रूपातीत एटले देहातीत सिद्ध परमात्मा–ए चार प्रकारना स्वरूपनुं
अनेक प्रकारे चिंतन बीजा स्थूळ विकल्पोमांथी छूटीने मनने एकाग्र करवा टाणे आवे,
तेने व्यवहारे धर्मध्यान कहेवाय, पण पछी तेना विकल्पो छूटीने निज स्वरूपमां उपयोग
जामे त्यारे खरूं धर्मध्यान कहेवाय, आ रीते चार प्रकारना सविकल्प चिंतनने व्यवहारे
धर्मध्यान कह्युं, परमार्थ धर्मध्यान निर्विकल्प छे. परमार्थ धर्मध्यान वीतराग छे, ने ते ज
मोक्षनुं साधक छे.
(२०) प्र: कोईवार अमुक ज्ञेयोने जाणती वखते राग के द्वेष थतो होय तेम
लागतुं नथी; तो ते वखते केवा प्रकारे राग समजवो?
उ: परिणतिमां ज्यांसुधी वीतरागता थई नथी त्यांसुधी राग छे. उपयोगनी
स्थूळतामां कोईवार राग–द्वेषना परिणाम न पकडाय, त्यारे पण भूमिकाअनुसार राग–
द्वेष परिणति वर्तती होय छे, मिथ्याद्रष्टि बहारथी शांत बेठेलो देखाय, परिणाममां
शांति लागती होय, त्यारे पण कषायोमां एकमेक परिणतिथी अनंतानुबंधी कषाय तेने
वर्ती ज रह्या छे. ज्ञानीने लडाईनी क्रिया ने क्रोधना परिणाम वखतेय अनंतानुबंधी
रागद्वेषनो अभाव छे. जीवना आवा सूक्ष्म परिणामोनुं माप बहारना स्थूळ ज्ञानथी न
आवे.
(२१) प्र:– जेम हरणियुं मृगजळ पाछळ दोडे छे, ठंडी हवा पण आवती नथी
छतां भ्रमथी पाणी मानीने दोडयुं जाय छे; तेम शुभभाव मृगजळ जेवा छे तेमां
अज्ञानी शांति शोधे छे–ते भ्रम छे एम आपे कह्युं,–परंतु अशुभ मटीने शुभभाव थाय
त्यां तो ठंडी हवा आवती होय–एवुं अमने लागे छे,–तो ए भ्रम केम टळे?
उ: स्वभावनी अतीन्द्रिय शांति शुं चीज छे तेनी अज्ञानीने खबर नथी, ते
शांति तेणे कदी जोई नथी तेथी शुभभावमां आकुळता कंईक ओछी थतां तेने भ्रमथी
शांति लागे छे; खरेखर शुभमांय शांति नथी पण आकुळता ज छे. धीरो थईने
स्वभावनो गंभीर विचार करे. तेमां ऊंडो ऊतरे तो शुभरागमांय आकुळता ने अशांति
लागे; ने त्यारे स्वभावनी शांतिनी ठंडी हवा आवे.....निर्विकल्प अनुभव करे त्यारे
स्वभावनी साची शांतिनी खबर पडे. अहा, चैतन्यनी शांतिना वेदन पासे ज्ञानीने
शुभरागमां पण धगधगती रेती जेवी आकुळता भासे छे. पण ए स्वभाव जेणे कदी
जोयो नथी तेने