: २८ : आत्मधर्म : अषाड :
तीव्र संकलेशमांथी कंईक मंद परिणाम थतां शांति लागे छे, पण ए खरी शांति नथी.
आत्मानी खरी शांति शुभरागथी जुदी ज जातनी छे.
(२२) प्र:–पर्याय ते आखी वस्तु नथी, छतां आखी वस्तुने कई रीते जाणी ल्ये
छे?
उ:– एक मतिज्ञाननी पर्यायमां पण ताकात छे के आखा आत्माने जाणी ल्ये;
पर्याय पोते आखी वस्तु नथी ए खरूं, पण आखी वस्तुने जाणवानी ताकात तेनामां
छे. केवळज्ञानपर्याय भले एक समयनी छे पण समस्त स्व–परने ते जाणी ले छे एवी
तेनी बेहद ताकात छे. पर्याय पोते आखी वस्तु होय तो ज आखी वस्तुने ते जाणी शके
एवुं कांई नथी. जेम आत्मा छ द्रव्योरूप न होवा छतां छ ए द्रव्योनी जाणी ल्ये एवी
तेनी ताकात छे, तेम एक पर्याय ते आखी वस्तु न होवा छतां आखी वस्तुने जाणी ल्ये
एवी एनी ताकात छे. जाणवानुं काम तो पर्यायमां थाय छे, कांई द्रव्य–गुणमां थतुं
नथी.
(२३) प्र:– सम्यग्द्रष्टि बीजा सम्यग्द्रष्टिने ओळखी ज ल्ये?
उ:– हा, ते प्रकारनो सीधो परिचय थाय तो जरूर ओळखी ल्ये.
(२४) प्र:– स्वानुभव मनजनित छे के अतीन्द्रिय छे?
उ:– स्वानुभवमां खरेखर मन के ईन्द्रियनुं अवलंबन नथी, तेथी ने अतीन्द्रिय
छे; पण स्वानुभवमां मतिश्रुतज्ञान छे ने मतिश्रुतज्ञान मनना के ईन्द्रियना अवलंबन
वगर होता नथी ते अपेक्षाए स्वानुभवमां मननुं अवलंबन पण गण्युं छे. खरेखर
मननुं अवलंबन तूटयुं तेटलो स्वानुभव छे; स्वानुभवमां ज्ञान अतीन्द्रिय छे.
(२प) प्र: एक सूक्ष्म परमाणु के सूक्ष्म स्कंध एकलो स्थूळरूपे परिणमे?
उ: ना, बीजा स्थूळ स्कंध साथे ते भळे त्यारे तेमां स्वयं स्थूळरूप परिणमन
थाय. जेम अनादिनो अज्ञानी जीव ज्ञानीना निमित्तपूर्वक ज ज्ञानी थाय छे, तेम स्थूळ
स्कंधना निमित्तपूर्वक ज बीजा सूक्ष्म स्कंधो के परमाणुओ स्थूळरूपे परिणमे छे, ए
अनादिनियम छे.