Atmadharma magazine - Ank 262
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : आत्मधर्म : ७ :
भाई, मोक्षनुं कारण तारामां ज छे, क््यांय बहार न ढूंढ. अंतर्मुख अनुभवद्वारा
आ आत्मा पोते ज मोक्षमार्गरूप परिणमीने मोक्षनुं कारण थाय छे. आत्माथी भिन्न
कोई बीजाने तुं मोक्षनुं कारण बनाववा मांगीश तो मोक्षनुं साचुं साधन तने नहि मळे.
मोक्षना उपायमां परद्रव्यनो किंचित सहारो नथी. माटे हे मोक्षार्थी! स्वसन्मुख थईने
आत्मानो ज अनुभव कर.
आत्मा केवो छे? दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी अभेदताथी एकरूप अनुभवतां ते शुद्ध
छे; पण दर्शन–ज्ञान–चारित्रना भेदथी लक्षमां लेतां अशुद्धतानो अनुभव थाय छे.
अभेदना अनुभवथी ज द्रव्यना सहज स्वभावनो अनुभव थाय छे. प्रमाणथी जोतां
आत्मामां अशुद्धता ने शुद्धता (अथवा भेद ने अभेद) बंने एक साथे छे.–छतां
शुद्धतानो अनुभव तो अभेदना आश्रये ज थाय छे. पोतामां व्यवहारथी जे भेद छे
तेना आश्रयथी पण अशुद्धतानो अनुभव थाय छे, तोपछी परना आश्रयनी तो वात
क्यां रही?
आत्मा दर्शन–ज्ञान–चारित्र एवा त्रण गुणरूप छे, एटले के एक अखंड
आत्माने गुणभेदथी जोतां तेनामां गुणभेद पण देखाय छे. ए भेदने जोवा ते व्यवहार
छे; ने परमार्थथी आत्मा निर्विकल्प–सर्व भेदरहित एकाकार वस्तु छे, ते स्वानुभवमां
व्यक्त छे, ने सर्व विभावनो मेटनशील छे, एटले के एनो निजस्वभाव परम शुद्ध छे,
तेमां कोई विभाव नथी; तेना अनुभवथी समस्त विभाव मटी जाय छे.–आवा
आत्माना अनुभवथी ज साध्यनी सिद्धि थाय छे.
आत्मा शुद्ध छे;–केम शुद्ध छे? के सर्व रागादि विभावने मटाडवानो तेनो
स्वभाव छे, तेना अनुभवथी सर्वे रागादि मटी जाय छे, तेथी तेनो स्वभाव शुद्ध छे.
जुओ, एना अनुभवथी शुद्धता थाय छे ने अशुद्धता मटे छे, माटे एनो स्वभाव शुद्ध
छे, ने विभावनो मेटनशील छे. रागादि अशुद्ध छे, केमके तेना अनुभवथी अशुद्धता
थाय छे. विभाव केम मटे? के जेमां विभाव नथी एवा शुद्धस्वभावना अनुभववडे
विभाव मटे. विकारनो नाश करे एवो स्वभाव तो त्रिकाळ छे ज, पण तेनी सन्मुख
थईने तेनो अनुभव करे त्यारे अशुद्धता टळे.
आत्मानो स्वभाव कोईथी बंधावानो नथी, बधायथी छूटवानो ज स्वभाव छे.
स्वभाव तो छूटो छे ने तेना अनुभवथी पर्यायमां शुद्धि थईने विभाव छूटे छे. माटे
आत्मासंबंधी अनेक विकल्पोथी बस थाओ, निश्चयथी शुद्ध छुं ने व्यवहारथी अशुद्ध छुं
अथवा मारो स्वभाव शुद्ध छे ने अशुद्धता मारा स्वभावमां नथी–एवा अनेक
विकल्पोथी अलम् एटले बस थाओ, ए विकल्पोवडे कांई सिद्धि नथी, शुद्ध–आत्मा
अनुभवरूप दर्शन–ज्ञान–चारित्रवडे ज साध्यनी सिद्धि थाय छे. माटे विकल्पथी पार
शुद्धवस्तुने प्रत्यक्ष