निष्कंप मेरूवत अने निर्मळ ग्रही सम्यक्त्वने,
श्रावक! ध्यावो ध्यानमां एने ज दुःखक्षयहेतुए. ८६
सम्यक्त्वने जे ध्यावतो ते जीव सम्यक् द्रष्टि छे,
दुष्टाष्टकर्मो क्षय करे सम्यक्त्वना परिणमनथी. ८७
अधिक शुं कहेवुं अरे! सिध्या अने जे सिद्धशे,
वळी सिद्धता–सौ नरवरो, महिमा बधो सम्यक्त्वनो. ८८
सम्यक्त्व–सिद्धिकर अहो, स्वप्नेय नहि दुषित छे,
ते धन्य छे सुकृतार्थ छे, शूर वीर ने पंडित छे. ८९
त्रणकाळ ने त्रणलोकमां समकित सम नहि श्रेय छे,
मिथ्यात्व सम अश्रेय को नहि जगतमां आ जीवने. ३४