Atmadharma magazine - Ank 262
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : श्रावण :
आस्वादमां ल्यो. शुद्ध स्वरूपनुं अवलोकन, तेनुं प्रत्यक्ष संवेदन ने तेमां लीनता–एना
वडे ज साध्यनी सिद्धि थाय छे ने बीजी कोई रीते साध्यनी सिद्धि थती नथी, साध्य
एटले आत्मानी पूर्ण शुद्ध मोक्षदशा, तेनुं साधन पण शुद्ध ज होय; विकल्प एनुं साधन
न होय. माटे कहे छे के हे मोक्षार्थी! मोक्षने अर्थे तुं तारा शुद्धात्मानी ज उपासना कर,
सम्यक्त्व

निष्कंप मेरूवत अने निर्मळ ग्रही सम्यक्त्वने,
श्रावक! ध्यावो ध्यानमां एने ज दुःखक्षयहेतुए. ८६
सम्यक्त्वने जे ध्यावतो ते जीव सम्यक् द्रष्टि छे,
दुष्टाष्टकर्मो क्षय करे सम्यक्त्वना परिणमनथी. ८७
अधिक शुं कहेवुं अरे! सिध्या अने जे सिद्धशे,
वळी सिद्धता–सौ नरवरो, महिमा बधो सम्यक्त्वनो. ८८
सम्यक्त्व–सिद्धिकर अहो, स्वप्नेय नहि दुषित छे,
ते धन्य छे सुकृतार्थ छे, शूर वीर ने पंडित छे. ८९
(–भगवत् कुंदकुंदस्वामी)

त्रणकाळ ने त्रणलोकमां समकित सम नहि श्रेय छे,
मिथ्यात्व सम अश्रेय को नहि जगतमां आ जीवने. ३४
(–श्री समन्तभद्रस्वामी)