Atmadharma magazine - Ank 262
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : आत्मधर्म : ९ :
अनादिथी अज्ञानजन्य विकल्पजाळमां ढंकायेली शुद्ध
चैतन्यवस्तुने परभावोथी अत्यंत जुदी बतावीने संतो कहे छे के
अरे जीवो! तमारी आ चैतन्यवस्तुने सदाय परभावोथी अत्यंत
भिन्नपणे अनुभवो. अरे जीव! एक क्षण पण तुं विकल्प वगरनो
नथी रही शकतो; एकवार तो विकल्पथी जुदो पडीने तारी
स्ववस्तुने देख.....तने कोई अपूर्व आनंद थशे. ए स्वभावदशानुं
सरस वर्णन करीने अहीं तेनी प्रेरणा करे छे.
(कलश टीका–प्रवचन)
चिरमिति नवतत्त्वच्छन्नमुन्नीयमानं
कनकमिव निमग्नं वर्णमालाकलापे।
अथ सततविविक्तं द्रश्यतमेकरूपं
प्रति पदमिदमात्मज्योतिरुघोतमानम्।।
जेने नजरमां लेतां अपूर्व चैतन्यनिधान प्रगट देखाय एवी वस्तु पोतामां ज
छे, तेने सर्वथा अनुभवो. द्रश्यतां नो अर्थ ज अनुभवरूप करो–एवो कर्यो. अमने
आवी शुद्धज्योतिरूप आत्मवस्तु ज संपूर्णपणे अनुभवरूप हो. आचार्यदेवने साधकदशा
तो शुद्धात्माना अनुभवथी थई छे, ने तेनी ज पूर्णतानी भावना भावे छे.
जेम नाटकमां एक ज माणस जुदा जुदा अनेक भावो देखाडे छे तेम आ
‘समयसार–नाटक’ मां एक जीववस्तु जुदा जुदा आश्चर्यकारी अनेक भावोपणे देखाय
छे. क््यारेय शुद्धरूपे क््यारेय अशुद्धरूपे एम अनेक भिन्नभिन्न भावपणे एक ज
जीववस्तु परिणमती देखाय छे; ते जाणतां आश्चर्य उपजे छे. ने ते बधा भावोमां
एकरूपे रहेनार शुद्धजीववस्तुने सम्यग्द्रष्टि ओळखी ल्ये छे. अनेकपणाने देखतां
जीववस्तुना साचा स्वरूपनुं दर्शन (सम्यक्–दर्शन) थतुं नथी. एकरूप रहेनार एवा
शुद्धस्वरूपे देखतां जीववस्तुनुं साचुं स्वरूप देखाय छे एटले के सम्यक्–दर्शन थाय छे.
अरे, तारुं आवुं शुद्धतत्त्व, तेने अमर्यादित काळथी तें नवतत्त्वथी विकल्पजाळमां
ढांकी दीधुं. विकल्पना अनुभवमां ज तुं गूंचवायो पण विकल्पथी बहार नीकळीने तारी