Atmadharma magazine - Ank 262
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 37

background image
: १२ : आत्मधर्म : श्रावण :
निर्मळअवस्थाना उत्पाद–व्ययने कांई वस्तुमांथी काढी शकातो नथी, ते तो
वस्तुनुं स्वरूप ज छे; पण आ वस्तु ने आ तेना उत्पाद–व्यय–एवा भेदो पाडतां
एकरूप वस्तु अनुभवमां नथी आवती, विकल्प मटतो नथी; माटे कहे छे के भेदने
देखवाथी शुद्ध आत्मानुं सम्यग्दर्शन थतुं नथी. एकाकार थईने शुद्धवस्तुने अभेदपणे–
तेमां एकाग्र थईने देखतां ज सम्यग्दर्शन थाय छे. एकवार स्वानुभवथी आवी प्रतीत
थई पछी सविकल्पकाळे पण ते प्रतीत खसती नथी. छतां पछी पण मोक्षमार्गमां
अभेद–स्वानुभववडे आगळ वधाय छे, ने केवळज्ञान थाय छे.
नवना विकल्प नहि, द्रव्य–गुण–पर्याय के उत्पाद–व्यय–धु्रव एवा त्रणना विकल्प
नहि, ने गुण–गुणीभेदरूप बेना विकल्पवडे, के हुं ज्ञायक एवा एकना विकल्पवडे पण
स्वानुभूति के सम्यग्दर्शन थतुं नथी. समस्त विकल्पोथी जुदी ज ज्ञानज्योत प्रकाशे छे,
ते ज स्वानुभूति छे. स्वानुभव वगर अज्ञानी जीव नवतत्त्वना विकल्पमां संतायेली
आ ज्ञानज्योतिने शोधी शकतो न हतो; विकल्पजाळमां तन्मय थईने पोते पोताना
शुद्धस्वरूपने संताडी दीधुं हतुं.–ढांकी दीधुं हतुं, तेने अहीं खुल्लुं करीने सन्तोए देखाडयुं
छे. ‘वाह!
सरस सहस यह ग्रंथ!’ स्वानुभवनो पंथ आ ग्रंथमां प्रगट कर्यो छे.
समयसार’ एटले सारमां सार वस्तु, एनुं दोहन करीने अमृतचंद्राचार्ये टीका अने
कलश रच्या; ते कळशना पण अध्यात्मभावो खोलीने आ कळशटीकामां एकलो सार
भरी दीधो छे...एकलो शुद्धात्माना अनुभवनो अध्यात्मरस घूंटयो छे. आ समयसार
एटले भरतक्षेत्रनो भगवान...ने एनो वाच्य ‘भगवान समयसार’ अंतरमां छे.
चेतना जेनुं लक्षण छे ते आत्मा–एम लक्षण वडे अनुमान थाय छे, पण प्रत्यक्ष
अनुभव थतो नथी. शुद्धात्माना प्रत्यक्ष अनुभवमां तो लक्षणनोय विकल्प नथी,
अनुभव वस्तु जुदी छे ने विकल्प वस्तु जुदी छे. ‘ज्ञान ते आत्मा’ एटलोय विकल्प
स्वानुभवमां समाय नहि. स्वानुभवमां आखो शुद्ध आत्मा समाय, पण विकल्पनो एक
कणियो पण एमां न समाय. चोथा गुणस्थाने सम्यक्त्वमां आवी वस्तु अनुभवमां
आवी जाय छे, ने त्यारे ज मोक्षमार्गनी धारा शरू थाय छे.
उमास्वामी तत्त्वार्थसूत्रमां कहे छे–उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्,
अहीं कहे छे के स्वानुभवमां उत्पाद–व्यय–धु्रवना विकल्प असत्,
–बंनेमां कांई विरुद्धता नथी. त्यां प्रमाणवस्तुनुं ज्ञान कराव्युं छे; ने अहीं ते
ज्ञानपूर्वक शुद्धवस्तुस्वभावना अनुभवनी वात छे. आत्मानो अनुभव केम थाय तेनी
आ वात छे. आवो अनुभव करवो ते सिद्धांतनो सार छे, ते ज आत्मानुं हित छे.