Atmadharma magazine - Ank 262
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : श्रावण :
सामायिक, प्रत्याख्यान वगेरे बधा धर्मो समाई जाय छे. आ अनुभूतिने ज जैनशासन
कह्युं छे; ए ज वीतरागमार्ग छे, ए ज जैनधर्म छे, ए ज श्रुतनो सार छे, संतोनी ने
आगमनी ए ज आज्ञा छे. शुद्धात्म–अनुभूतिनो अपार महिमा छे ते क््यांसुधी कहीए?
जाते अनुभूति करे एने एनी खबर पडे.
आ कोनी वात छे? गृहस्थ–समकितीनी वात छे. जे हजी घर–कुटुंब–परिवार
वच्चे रहेलो छे, वेपार धंधा–रसोई वगेरेना भाव करे छे ने अंदर ए बधाथी भिन्न
शुद्धात्माने पण जाण्यो छे, ते जीव उद्यम वडे बहारथी परिणामने पाछा खेंचीने,
उपयोगने निजस्वरूपमां जोडे छे ने निर्विकल्प अनुभव करे छे तेनी आ वात छे. आवो
अनुभव चारेगतिना जीवोने (तिर्यंच अने नारकने पण) थई शके छे. पहेलां जेणे
साचो तत्त्वनिर्णय कर्यो होय, वीतरागी देव–गुरु–धर्मनी ओळखाण करी होय, नव
तत्त्वमां विपरीतता दूर करी होय, पर्यायमां आस्रव–बंधरूप विकार छे, शुद्धद्रव्यना
आश्रये ए टळीने शुद्धात्मअनुभूतिथी संवर निर्जरारूप शुद्धदशा प्रगटे छे,–आम
अनेकान्तवडे द्रव्य–पर्याय बधा पडखाना ज्ञानपूर्वक शुद्ध अनुभव थाय छे. अन्य लोको
जे शुद्ध अनुभवनी वात करे छे तेमां अने जैनना शुद्ध अनुभवमां मोटो फेर छे; अन्य
लोको तो, पर्यायमां अशुद्धता हती ने शुद्धता थई एना स्वीकार वगर एकान्त शुद्ध–
शुद्धनी वात करे छे पण एवो (शुद्ध पर्याय विनानो) शुद्ध अनुभव होय नहि. जैननो
शुद्ध अनुभव तो शुद्धपर्यायना स्वीकार सहित छे. पहेलां अशुद्धता हती ते टळीने
शुद्धपर्याय थई तेने जो न स्वीकारे तो शुद्धतानो अनुभव कर्यो कोणे? ने ए अनुभवनुं
फळ शेमां आव्युं? द्रव्य अने पर्याय ए बंनेना स्वीकाररूप अनेकान्त वगर अनुभव,
अनुभवनुं फळ ए कांई बनी शकतुं नथी. पर्याय अंतर्मुख थईने ज्यारे शुद्धस्वभावनुं
आराधन–सेवन–ध्यान करे त्यारे ज शुद्ध अनुभव थाय छे.
आ शुद्ध अनुभव एटले के निर्विकल्प अनुभव शुं चीज छे ने केवी ए अंतरदशा
छे! ए जिज्ञासुए लक्षगत करवा जेवुं छे. अहा, निर्विकल्प अनुभवनुं पूरुं कथन
करवानी वाणीनी ताकात नथी; ज्ञानमां एने जाणवानी ताकात छे, अंदर वेदनमां आवे
छे, पण वाणीमां ए पूरुं आवतुं नथी; ज्ञानीनी वाणीमां एना मात्र ईशारा आवे छे.
अरे, जे विकल्पने पण गम्य थतो नथी एवो निर्विकल्प अनुभव वाणीथी कई रीते
गम्य थाय? ए तो स्वानुभवगम्य छे.
एक सज्जन साकरनो मीठो स्वाद लेतो होय त्यां कोई बीजो माणस
जिज्ञासापूर्वक ए साकर खानारने जुए के तेनी पासेथी साकरना मीठा स्वादनुं वर्णन
सांभळे तेथी कांई तेना मोढामां साकरनो स्वाद आवी जाय नहि; जाते साकरनी कटकी
लईने मोढामां