Atmadharma magazine - Ank 262
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : श्रावण :
स्वानुभव तरफ ढळती विचारधारा
स्वानुभव ए ज आराधनानो खरो समय छे
तत्त्वना अवलोकनकाळे समय अर्थात् शुद्धात्माने युक्तिमार्गथी अर्थात् नय–
प्रमाण वडे पहेलां जाणे, त्यारपछी आराधनसमये एटले के अनुभवनना काळे ते
नय–प्रमाण नथी; केमके त्यां प्रत्यक्षअनुभव छे;–जेम रत्ननी खरीदी वखते तो
अनेक विकल्प करे छे, पण ते प्रत्यक्ष पहेरीए त्यारे विकल्प नथी.–पहेरवानुं सुख
ज छे.–एम नयचक्रग्रंथमां कह्युं छे.
जुओ, चैतन्यनो अनुभव समजाववा माटे दाखलो पण रत्ननो आप्यो.
उत्तमवस्तु समजाववा माटे द्रष्टांत पण उत्तमवस्तुनुं आप्युं. रत्न लेवा कोण नीकळे?
कोई मामुली माणस रत्न लेवा न आवे पण उत्तम–पुण्यवान माणस रत्न खरीदवा
आवे; एम अहीं पण जे उत्तमजीव–आत्मार्थी जीव चैतन्यना अनुभवरूप रत्न लेवा
आव्यो छे तेनी वात छे; एवा जीवने पहेलां सविकल्प विचारधारामां आत्माना
स्वरूपनुं अनेक प्रकारे चिंतन होय छे. जेम रत्न खरीदनार खरीदती वखते ते संबंधी
अनेक विचार करे छे, रत्ननी जात केवी, तेनी झलक केवी, तेज केवुं, वजन केटलुं,
आकृति केवी, रंग केवो, किंमत केटली, डोकमां पहेरवाथी ते केवुं शोभशे–ईत्यादि अनेक
प्रकारना विकल्पोथी चारेपडखेथी रत्ननुं स्वरूप नक्की करे छे, अने पछी ते रत्नहारनी
किंमत चूकवी खरीदीने ज्यारे डोकमां साक्षात् पहेरे त्यारे तो हारनी प्राप्तिना संतोषनुं
सुखज रहे छे, बीजा विकल्पो त्यां रहेता नथी. तेम चैतन्यरत्ननी प्राप्तिनो उद्यमी जीव
पहेलां तो सविकल्प विचारथी अनेक प्रकारे पोतानुं स्वरूप चिंतवे छे: मारो स्वभाव
द्रव्यद्रष्टिथी शुद्ध सिद्धसमान छे, पर्यायद्रष्टिथी मारामां मलिनता छे; मोक्षमार्ग निश्चयथी
शुद्धस्वभावना ज आश्रये छे; रागने जो मोक्षनुं कारण मानीए तो आस्रव अने संवर
तत्त्वो भिन्न न रहे; उपयोगने अंतर्मुख करवाथी ज शुद्धात्मानी अनुभूति थाय ने त्यारे
ज आनंदनुं वेदन प्रगटे.–आम अनेकप्रकारे युक्तिथी, नय–प्रमाण वगेरेथी नक्की करे.
आत्मानुं स्वरूप केवुं? तेनी शक्तिओ केवी? तेनुं कार्य केवुं? तेना प्रदेशो केवा? तेना
भावो केवा? स्वभावभावो कया? विकारी भावो क््या? उपादेयरूप शुद्धस्वरूप केवुं?
तेना अनुभवनुं सुख केवुं? तेनो प्रयत्न केवो?–एम अनेक प्रकारथी विचारीने नक्की
करती वखते साथे विकल्प होय छे; पण पछी, बधाय पडखेथी स्वरूप बराबर नक्की
करीने, तेनो उत्कृष्ट महिमा लावीने प्रयत्नपूर्वक ज्यारे उपयोगने अंतर्मुख करीने
आत्मानो प्रत्यक्ष अनुभव करे छे त्यारे तो