Atmadharma magazine - Ank 262
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : आत्मधर्म : १९ :
ए अनुभवना आनंदनुं ज वेदन रहे छे. उपरना विकल्पो त्यां होता नथी.–आ रीते
सम्यग्द्रष्टिने निर्विकल्प अनुभव थाय छे. आवो अनुभव करवो ए ज आराधनानो
खरो समय छे; आवो अनुभव ए ज साची आराधना छे. पहेलां विचारदशामां विकल्प
हतो तेथी सविकल्पद्वारा आ अनुभव थयो–एम कह्युं, परंतु खरेखर कांई विकल्पद्वारा
अनुभव थयो नथी, विकल्प तूटयो त्यारे साक्षात् अनुभव थयो छे ने ए अनुभवने
‘प्रत्यक्ष’ कह्यो छे. –‘पच्चक्खो अणुहवो जह्मा’ (प्रवचनसार गाथा ८० मां पण
मोहक्षयनो उपाय दर्शावतां आवी ज शैलिनुं वर्णन कर्युं छे; त्यां प्रथम अरिहंतना द्रव्य–
गुण–पर्यायनी ओळखाण द्वारा पोतानुं स्वरूप विचारी, पछी साक्षात् अनुभव करे छे–
ते बताव्युं छे.)
‘विचारमां तो विकल्प थाय छे’ एम समजी कोई जीव विचारधारा ज न
उपाडे, तो कहे छे के भाई! विचारमां कांई एकला विकल्प ज नथी; विचारमां भेगुं
ज्ञान पण तत्त्वनिर्णयनुं काम करे छे. एमां ज्ञाननी मुख्यता कर ने विकल्पने गौण कर.
आम स्वरूपनो अभ्यास करतां करतां ज्ञाननुं बळ वधतां विकल्प तूटी जशे ने ज्ञान
रही जशे, एटले के विकल्पथी छूटुं ज्ञान अंतरमां वळीने स्वानुभव करशे. पण जे जीव
तत्त्वनुं अन्वेषण ज करतो नथी, आत्मानी विचारधारा ज जे उपाडतो नथी तेने तो
निर्विकल्प स्वानुभव क््यांथी थशे? माटे जे जिज्ञासु थईने स्वानुभव करवा मांगे छे, ते
यथार्थ तत्त्वोनुं अन्वेषण करीने तत्त्वनिर्णय करे छे ने स्वभाव तरफनी विचारधारा
उपाडे छे, ते जीव पोतानुं कार्य अधूरूं मुकशे नहीं; ते पुरुषार्थवडे विकल्प तोडीने,
स्वरूपमां उपयोग जोडीने निर्विकल्प स्वानुभव करशे ज. स्वभावना लक्षे उद्यम उपाडयो
ते विकल्पमां अटकशे नहि, विकल्पमां संतोष पामशे नहि; ए तो स्वानुभवथी
कृतकृत्यदशा प्रगट कर्ये ज छूटको. माटे कह्युं छे के ‘कर विचार तो पाम.’
स्वानुभवनुं वर्णन आवता अंके
सु.. . . .खी
अहो! आत्मा आनंदस्वभावथी भरेलो छे, आवा आत्मानी सामे जुए तो
दुःख छे ज क््यां? आत्माना आश्रये धर्मात्मा निःशंक सुखी छे के भले देहनुं गमे तेम
थाओ के ब्रह्मांड आखुं गडगडी जाओ, तोपण तेनुं दुःख मने नथी, मारी शांति–मारो
आनंद मारा आत्माना ज आश्रये छे. हुं मारा आनंदसमुद्रमां डुबकी मारीने लीन थयो
त्यां मारी शांतिमां विघ्न करनार जगतमां कोई नथी. आ रीते धर्मात्मा आत्माना
आश्रये सुखी छे.
(–सुखशक्तिना प्रवचनमांथी)