: २० : आत्मधर्म : श्रावण :
त....त्त्व...च...र्चा
(३)
(तत्त्वरसिक जिज्ञासुओने प्रिय, आत्मधर्मनो चालु विभाग)
विचार ते मिथ्यात्व नथी
(३०) प्रश्न: द्रव्य–गुण–पर्यायना भेदना विचारमां पण मिथ्यात्व छे–ते कई
रीते?
उत्तर:– भेदना विचार ते कांई मिथ्यात्व नथी. एवा भेदविचार तो
सम्यग्द्रष्टिनेय होय; पण ते भेदविचारमां जे रागरूप विकल्प छे तेने लाभनुं कारण
मानीने तेमां एकत्वबुद्धिथी जे जीव अटके तेने मिथ्यात्व जाणवुं, एकत्वबुद्धि वगरना
भेदविकल्प ते मिथ्यात्व नथी, ते अस्थिरतानो राग छे.
सम्यक्त्वनो मार्ग
(३१) प्रश्न:– गुणभेदना विचारथी पण मिथ्यात्व न टळे, तो मिथ्यात्वने
टाळवुं केम?
उत्तर:– शुद्धआत्मवस्तु के जेमां राग के मिथ्यात्व छे ज नहि–ते शुद्धवस्तुमां
परिणाम तन्मय थतां मिथ्यात्व टळे छे; बीजा कोई उपायथी मिथ्यात्व टळे नहि. भाई,
गुणभेदनो विकल्प पण शुद्धवस्तुमां क््यां छे?–नथी; तो ते शुद्धवस्तुनी प्रतीत
गुणभेदना विकल्पनी अपेक्षा राखती नथी. वस्तुमां विकल्प नथी. ने विकल्पमां वस्तु
नथी; एम बंनेनी भिन्नता जाणतां परिणति विकल्पमांथी खसीने (छूटी पडीने)
स्वभावमां आवे त्यां मिथ्यात्व टळी जाय छे.–आ मिथ्यात्व टाळवानी रीत छे; एटले के
‘उपयोग’ अने रागादिनुं भेदज्ञान ते सम्यक्त्वनो मार्ग छे. ते माटे, विकल्प करतां
चिदानंद स्वभावनो अनंतो महिमा भासीने तेनो अनंतो रस आववो जोईए.
आहारकशरीर
(३२) प्रश्न:– जे मुनि आहारकशरीर बांधे तेने ते उदयमां आवे ज–एवो
नियम छे?