Atmadharma magazine - Ank 262
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : श्रावण :
ग्दर्शन छे–एम सम्यग्दर्शननी विधि तो आपे समजावी, पण हवे ते विधिने अमलमां
केम मुकवी?–विकल्पमांथी गूलांट मारीने निर्विकल्प केवी रीते थवुं–ते समजावो.
उत्तर:– विधि यथार्थ समजाय तो परिणति गूलांट मार्या वगर रहे नहि.
विकल्पजात अने स्वभावजात बंनेने भिन्न जाणतांवेंत ज परिणति विकल्पमांथी छूटी
पडीने स्वभाव साथे तन्मय थाय छे. विधिने सम्यक्पणे जाणवानो काळ, ने परिणतिनो
गूलांट मारवानो काळ,–बंने एक ज छे. विधि जाणे पछी एने शीखववुं न पडे के तुं
आम कर. जे विधि जाणी ते विधिथी ज्ञान अंतरमां ढळे छे. सम्यक्त्वनी विधिने
जाणनारुं ज्ञान पोते कांई रागमां तन्मय नथी, स्वभावमां तन्मय छे,–अने एवुं ज्ञान
ज साची विधिने जाणे छे. रागमां तन्मय रहेलुं ज्ञान सम्यक्त्वनी साची विधिने जाणतुं
नथी.
देवलोकना देवो
(३६) प्रश्न:– सर्वार्थसिद्धिमां केटला देवो छे?
उत्तर:– सर्वार्थसिद्धिविमान जंबुद्वीप जेवडुं एक लाख योजन विस्तारवाळुं छे;
तेमां संख्याता देवो छे. ते बधाय देवो नियमथी सम्यग्द्रष्टि अने एकावतारी छे. ए
सिवाय नवग्रैवैयक उपर नवअनुदिश तथा अपराजित वगेरे बीजा चार अनुत्तर
विमानो छे. तेमां असंख्यात देवो छे ने तेओ पण बधाय नियमथी सम्यग्द्रष्टि ज होय
छे; मिथ्याद्रष्टिनो त्यां अभाव छे. बारमास्वर्गथी उपर, आनत–प्रानत स्वर्गथी
मांडीने नवमी ग्रैवेयक सुधीमां जे असंख्य देवो छे तेमां सम्यग्द्रष्टि झाझा छे ने
मिथ्याद्रष्टि थोडा छे.
आत्मद्रव्यनी अचिंत्य ताकात
प्रश्न:– संख्या अपेक्षाए मोटामां मोटुं अनंत कोण?
उत्तर:– केवळज्ञानना अविभागप्रतिच्छेद सौथी महान अनंत छे. अलोकाकाशना
प्रदेश वगेरे बीजा अनंत करतां ए अनंतगणुं–एम कहीने पण तेनुं माप आपी शकातुं
नथी. आत्मद्रव्यनी आ कोई अचिंत्य ताकात छे. जेम विकल्पथी तेनी ताकातनो पार
नथी पमातो तेम गणीतथी पण तेनी ताकातनो पार नथी पमातो.
धर्मनो मर्म
(३८) प्रश्न:– धर्मनो मर्म शुं छे?