: श्रावण : आत्मधर्म : २प :
वाळतां तने स्वानुभूतिमां तारा स्वभावनी प्राप्ति थाय छे. आ रीते तारा स्वभावनी
प्राप्तिनुं साधन ताराथी अभिन्न, तारामां ज छे. श्रुतपरिणतिने अंतरमां वाळीने द्रव्य
साथे एकता–तन्मयता करतां क्षणेक्षणे–समये समये नवी नवी अपूर्व शान्ति ने अपूर्व
आनंद अनुभवमां आवे छे.
(१६७) परिणामनी विचित्रता
रावणे सीताजीनुं हरण कर्युं, लक्ष्मण द्वारा रावणनो वध थयो; सीताजी स्वर्गमां
र२ सागरनी स्थितिए उपज्या, रावण ने लक्ष्मण नीचेनी त्रीजी पृथ्वीमां ७ सागरनी
स्थितिए उपज्या; त्यांथी नीकळीने ते बंने भाई थशे ने बीजा १प सागर सुधी अनेक
भव करशे; २२ सागर पछी सीताजीनो आत्मा ज्यारे चक्रवर्ती थशे त्यारे रावण अने
लक्ष्मण ए बंने जीवो तेना पुत्रो थशे. कयां रावण ने क््यां सीता,–ए ज पिता–पुत्र
थशे; क्यां लक्ष्मण ने रावण–एकबीजाना प्रतिस्पर्धी, ने क्यां बंने एकबीजाना भाई!
पछी रावणनो आत्मा तो अनुक्रमे केटलाक भवे तीर्थंकर थशे ने सीतानो जीव तेना
गणधर थशे. लक्ष्मणनो जीव पण अनुक्रमे पुष्करद्वीपना विदेहक्षेत्रमां तीर्थंकर थशे.
जुओ, जीवना परिणामनी विचित्रता!
(१६८) आत्मानुं अस्तित्व
प्रश्न:– आत्मा छे तो ते आंखथी देखातो केम नथी?
उत्तर:– भाई, आंखथी देखाय तेनुं ज अस्तित्व मानवुं–ए सिद्धान्त बराबर
नथी. आत्मा वगेरे वस्तुओ एवी छे के जेनुं अस्तित्व आंखथी न देखाय पण ज्ञानथी
जणाय. आत्माने अतीन्द्रिय स्वसन्मुख ज्ञानथी ज अनुभवी शकाय छे. वळी पदार्थोनुं
जे ज्ञान थाय छे ते उपरथी आत्मानुं अस्तित्व नक्की थाय छे; आत्मा न होय तो ज्ञान
क््यांथी थाय?
कोई शंका करे के ‘आत्मा नथी,’ तो कहे छे के हे भाई! ‘आत्मा नथी’ एवी
शंका आत्मा विना कोणे करी? ए शंका करनार कोण छे? ए शंका करनार जे तत्त्व छे ते
आत्मा ज छे, शंका कांई जड तत्त्वमां नथी जागती. आत्मा देहथी भिन्न तत्त्व छे एटले
जन्म–मरण जेटलो ज ते नथी.
(१६९) धर्मीनो अनुभव
आत्मा निजस्वरूपमां प्रवेशीने एकाग्र थयो त्यां राग जुदो रही गयो,–एनुं
नाम भेदज्ञान; रागथी भिन्न शुद्धात्मानो आवो अनुभव एकवार थयो पछी धर्मीने कदी
रागमां एकत्वबुद्धि थती नथी. राग वखतेय रागथी भिन्न शुद्धात्माने ज ते स्वपणे
अनुभवे छे; रागने निजस्वभावपणे एकक्षण पण अनुभवता नथी. धर्मीनो अनुभव
ते मोक्षनो मार्ग छे.
(अनुसंधान २३मा पाना उपर)