Atmadharma magazine - Ank 262
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 29 of 37

background image
: २६ : आत्मधर्म : श्रावण :
आत्मा शुं छे ने ते शुं करे छे?
(समयसार कलश ६२ उपरना प्रवचनमांथी)
जे वस्तुनुं जे भावमां अस्तित्व होय ते भावमां
ज तेनुं कार्य होय; वस्तुनुं कार्य पोताना निजभावथी
बहार न होय. आत्मा ज्ञानस्वरूप छे, ज्ञानभावमां तेनुं
अस्तित्व छे एटले ज्ञानभावमां ज तेनुं कार्य छे. ज्ञानथी
बहार तेनुं कांई कार्य नथी. ज्ञानभावमां ज पोतानी
सत्ता जाणतो धर्मी जीव कहे छे के अमने अमारा
चैतन्यनो उत्साह छे, परभावनो उत्साह नथी. चैतन्यनो
प्रेम कदी छूटवानो नथी ने रागनो प्रेम कदी थवानो नथी.
कोई परभाव आवीने अमारा चैतन्यना उत्साहनो रंग
लई जाय एम कदी बनवानुं नथी.–आ रीते
ज्ञानस्वभावना कार्यने करतो धर्मी जीव मोक्षने साधे छे.
चैतन्यतत्त्व शुं चीज छे ने ते शुं कार्य करी शके छे ते वात अनादिथी अज्ञानी
जीवे जाणी नथी. शास्त्रो कहे के–
जडभावे जड परिणमे, चेतन चेतनभाव;
कोई कोई पलटे नहि छोडी आपस्वभाव.
आत्मा जडथी भिन्न तत्त्व छे, ते त्रणेकाळे जडथी भिन्न ज रहे छे. आत्मा
पोताना चेतनाभावने छोडीने कदी जड न थाय, ने जड पदार्थ तेनी जडताने छोडीने कदी
चेतन न थाय. बंने पदार्थो सदाय भिन्नभिन्न पोताना स्वभावमां ज रहेलां छे. आवुं
भिन्न वस्तुस्वरूपनुं भान करवुं ते धर्मनी पहेली रीत छे.
भिन्नपणुं समजे तो पोते कोण छे ने पोतानुं कार्य शुं छे–ते समजे, अने परनां
कार्योनी कर्तृत्वबुद्धिरूप मिथ्यात्व टळे; परिणति स्व तरफ वळे ने स्वाश्रये
निर्मळपरिणति प्रगटे–एनुं नाम धर्म छे.
आत्मा शुं छे ने तेनुं कार्य शुं छे? ते वात अहीं आचार्यदेव बतावे छे. आत्मा
स्वयं ज्ञानस्वरूप वस्तु छे. पोते ज्ञानस्वरूप छे, ते ज्ञानथी भिन्न बीजुं शुं करे? ज्ञान–