Atmadharma magazine - Ank 262
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : आत्मधर्म : २७ :
स्वरूप आत्मा तो पोताना ज्ञानभावोने ज करे, पण ज्ञानथी भिन्न बीजा पदार्थोमां
आत्मा कांई करे नहि. पाठशाळाना बाळकोने पण पहेलेथी आ श्लोक शिखवाय छे के–
आत्मा ज्ञानं स्वयं ज्ञानं, ज्ञानात् अन्यत् करोति किम्
परभावस्य कर्तात्मा, मोहोयं व्यवहारिणाम्।।६२।।
चेतनपरिणामी आत्मवस्तु ते पोताना चेतनपरिणामने ज करे छे, अने खरेखर
तो स्वसन्मुख रहीने ज्ञानभावे परिणमवुं ते ज आत्मानुं स्वरूप छे. रागादि भावरूपे
परिणमवुं ते पण ज्ञाननुं स्वरूप नथी, तोपछी भिन्न एवा परद्रव्योमां आत्मा शुं करे?
‘हुं करुं’ एवी मात्र कल्पना करे छे, ते तो अज्ञानीनो मोह छे; ते कल्पना वडे पण कांई
परद्रव्यनां काम तो आत्मा करी शकतो नथी.
भाई, जड शरीरमां तारुं अस्तित्व ज नथी, तो तेना कार्यमां तुं शुं कर? जडना
कार्य जो तुं कर तो तो तारुं अस्तित्व जडरूप थई जाय, तुं ज्ञानस्वरूप न रहे. केमके जे
कार्यनो जे कर्ता होय ते कार्यमां तेनुं अस्तित्व होय. जडना कार्यनो कर्ता जो आत्मा होय
तो आत्मानुं अस्तित्व ते जडमां चाल्युं जाय.–पण एम तो त्रणकाळमां नथी बनतुं,
केमके–
जड ते जड त्रणकाळमां, चेतन चेतन होय.
जड के चेतन पदार्थ त्रणेकाळ पोतपोताना स्वरूपे ज रहे छे. आवी भिन्न
वस्तुस्थिति छे, छतां अज्ञानी एम माने छे के हुं परनो कर्ता छुं. तेनी ए मान्यता
मिथ्यात्व ज छे. अज्ञानी जीव पण पोताना रागादि अज्ञानभावोने करे छे, पण परनां
काम तो ते करतो नथी.
दरेक पदार्थ सत् छे, ने ते सत्नी मर्यादा पोतपोताना स्वकार्यमां छे; पोतानी
मर्यादा छोडीने परना कार्यमां कोई वस्तु कांई करी शकती नथी. आत्मा अनंत शक्तिना
गंभीर स्वभावथी परिपूर्ण छे. पण ते शक्तिओनुं कार्य पोतामां ज समाय छे; एक्केय
एवी शक्ति नथी के परमां काम करे. भाई, आवुं परथी भिन्नपणुं होवाथी परमां तारुं
अत्यंत अकर्तापणुं छे, त्यां परना कर्तृत्वनो आ मोह शो? परमां अत्यंत अकर्तापणुं
समजे तो परिणतिने अंतरमां स्व तरफ लाववानो अवकाश रहे. पण परना कर्तृत्वनी
मिथ्याबुद्धिमां ज जेनी परिणति मशगुल छे ते स्व तरफ क््यारे वळे? ने आत्मानो
अनुभव क्यारे करे?
(आ लेखनो बाकीनो भाग आवता अंके)