आत्मा कांई करे नहि. पाठशाळाना बाळकोने पण पहेलेथी आ श्लोक शिखवाय छे के–
परिणमवुं ते पण ज्ञाननुं स्वरूप नथी, तोपछी भिन्न एवा परद्रव्योमां आत्मा शुं करे?
‘हुं करुं’ एवी मात्र कल्पना करे छे, ते तो अज्ञानीनो मोह छे; ते कल्पना वडे पण कांई
परद्रव्यनां काम तो आत्मा करी शकतो नथी.
कार्यनो जे कर्ता होय ते कार्यमां तेनुं अस्तित्व होय. जडना कार्यनो कर्ता जो आत्मा होय
तो आत्मानुं अस्तित्व ते जडमां चाल्युं जाय.–पण एम तो त्रणकाळमां नथी बनतुं,
केमके–
मिथ्यात्व ज छे. अज्ञानी जीव पण पोताना रागादि अज्ञानभावोने करे छे, पण परनां
काम तो ते करतो नथी.
गंभीर स्वभावथी परिपूर्ण छे. पण ते शक्तिओनुं कार्य पोतामां ज समाय छे; एक्केय
एवी शक्ति नथी के परमां काम करे. भाई, आवुं परथी भिन्नपणुं होवाथी परमां तारुं
अत्यंत अकर्तापणुं छे, त्यां परना कर्तृत्वनो आ मोह शो? परमां अत्यंत अकर्तापणुं
समजे तो परिणतिने अंतरमां स्व तरफ लाववानो अवकाश रहे. पण परना कर्तृत्वनी
मिथ्याबुद्धिमां ज जेनी परिणति मशगुल छे ते स्व तरफ क््यारे वळे? ने आत्मानो
अनुभव क्यारे करे?