अध्यात्मवाणीनो प्रवाह वहेवडाव्यो छे, तीर्थंकरो अने
संतोनो ए अध्यात्मसन्देश झीलीने अनेक जीवो पावन
थाय छे. गृहस्थ–श्रावकधर्मात्माओए पण ए
अध्यात्मरसना पुनित प्रवाहने पोतानी
अध्यात्मरसिकता वडे वहेतो राख्यो छे.....ए
अध्यात्मरसना पानथी, संसारना संतप्त जीवो परम
तृप्ति अनुभवे छे.
पाकया छे के जेमनुं अध्यात्मजीवन अने अध्यात्मवाणी अनेक जिज्ञासुओने अध्यात्मनी
प्रेरणा जगाडे छे. तेमांथी अध्यात्मरसिक विद्वान श्रावको पं. श्री टोडरमल्लजी अने पं. श्री
बनारसीदासजी, ए बंनेनो टूंक जीवनपरिचय अहीं आपवामां आवे छे. ए बंनेए
लखेली अध्यात्मवचनीका (चिठ्ठि) उपर पू. गुरुदेवे अध्यात्मरसभरेलां प्रवचनो कर्यां छे.
जगतना बधा रसो करतां अध्यात्मरस ए केटलो सर्वोत्कृष्ट छे ने तेनो स्वाद केटलो
रसभरपूर (स–रस) छे, ते जिज्ञासुओने ए प्रवचनोमां देखाशे. तेमां सम्यक्त्वसंबंधी
अने निर्विकल्प स्वानुभवसंबंधी जे आत्मस्पर्शी चर्चाओ भरी छे ते सम्यकत्वपिपासु
जीवोने खरेखर अत्यंत आहलादकारी छे. स्वानुभवना ने सम्यक्त्वना कोई अद्भुत–
अचिंत्य महिमानुं झरणुं गुरुदेवे ए प्रवचनोमां वहेवडाव्युं छे, ने तेना द्वारा स्वानुभवी
संतोनी परिणतिनुं साक्षात् दर्शन कराव्युं छे.
हता; जेओ हता तेमने पण एकबीजानो संपर्क ने समागम बहु ज मुश्केलीथी बनी शकतो,
केमके ते जमानामां आजना जेवी वाहनव्यवहारनी सुविधा न हती. २०० वर्ष पहेलां ए
पत्र लखायो त्यारे टपालनी पण सगवड न हती; खेपिआ मारफत एकाद महिने मांड
पत्रोत्तर बनी शकतो. आवी परिस्थितिमां लांबे गाळे ज्यारे खेपियो अध्यात्मरसिक
साधर्मीओ पत्र लईने आवतो हशे त्यारे ते पत्र हाथमां आवतां ज जिज्ञासुओ