Atmadharma magazine - Ank 262
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : आत्मधर्म : २९ :
केवा आनंदित थता हशे! साधर्मीनो पत्र प्राप्त थतां पंडितजी लखे छे के “भाईश्री,
आवा प्रश्न तमारा जेवा ज लखे. आ वर्तमानकाळमां अध्यात्मरसना रसिक जीवो बहु
ज थोडा छे. धन्य छे तेमने जेओ स्वानुभवनी वार्ता पण करे छे”
अहा, स्वानुभवनी चर्चा करे तेने पण धन्य कह्या, तो जेओ स्वानुभवरूपे
साक्षात् परिणम्या छे–स्वयं अध्यात्मरूप बन्या छे–एवा संतना महिमानी शी वात?
अने एवा संतोनो साक्षात् सत्समागम तथा तेमना चरणनी साक्षात् उपासना, ने
तेमनी वाणीनुं साक्षात् श्रवण आपणने मळ्‌युं,–ते केवा धन्य भाग्य?
पं. श्री टोडमल्लजी पत्रमां छेल्ले लखे छे के ‘ज्यां सुधी मळवुं थाय नहि
त्यांसुधी पत्र तो शीघ्र ज लख्या करो. साधर्मीने तो परस्पर चर्चा ज जोईए.’ आ
उपरथी साधर्मीनो समागम केटलो दुर्लभ हतो ने तेना पत्रनी केटली धगश रहेती तेनो
ख्याल आवे छे.
ते वखते बेलगाडीनो ने ऊंटनो युग हतो, आजे विमाननो ने रोकेटनो युग छे.
आजे तो भारतना एक छेडेथी बीजा छेडे थोडा ज कलाकमां हवाई–मुसाफरीथी पहोंची
जवाय छे. हजारो गाउ दूर बेठाबेठा पण टेलिफोनथी सीधी वातचीत थई शके छे. ते
वखते एक प्रान्तमांथी बीजा प्रान्तमां जतांय बेलगाडीमां अनेक महिना लागी जता;
सन्देशनी आप–ले लांबा गाळे थई शकती. एटले ए वखते साधर्मीना मिलननो के
साधर्मीना सन्देशनी प्राप्तिनो जे अनेरो आहलाद जागतो तेनो ख्याल अत्यारना
युगमां आववो मुश्केल छे.
पं. श्री टोडरमल्लजीनी लखेली रहस्यपूर्ण चिठ्ठि गुरुदेवना हाथमां ज्यारे
पहेलवहेली आवी ने तेमणे वांची, के तरत तेमने आहलाद थयो के वाह! आवी चिठ्ठि!
एनी किंमत शुं थाय? ज्ञानना अर्थीने तेनी खरी किंमत थाय. अहो, आमां तो जाणे
हीरानां कण भर्यां छे! ते वखते (चालीसेक वर्ष पहेलां) पण आवा साहित्यनी प्राप्ति
एवी दुर्लभ हती के ए चिठ्ठि गुरुदेवे लखी लीधी हती.
जे पत्रना जवाबरूपे पंडितजीए आ चिठ्ठि लखेल छे ते पत्र सीधो पं.
टोडरमल्लजी उपर लखायेलो नथी, परंतु मुलतानना भाईओए जहानाबादना
रामसिंहजी भुवानीदासजी उपर पत्र लखेल, तेमणे बीजा साधर्मीओ साथे वात थयेल
अने ते बीजा साधर्मीओए जहानाबादथी पं. टोडरमल्लजीने जयपुर लखेल. एटले
मूळ पत्र लखाया पछी फरतो फरतो त्रीजी भूमिकाए पंडितजीने मळेल छे; ने
पंडितजीए तेना उपर सीधा मुलतानना भाई–